एक
जनमानस के साथ साथ बुद्धिजीवयों राज नेताओं और शैक्षिक नौकर शाहों में समान रूप से व्याप्त छह प्रकार के भरम पहचाने है जो इस प्रकार हैं -----
1 . सामाजिक -आर्थिक कारकों में परिवर्तन लाये बगैर शिक्षा में परिवर्तन संम्भव है । इस भरम के पीछे मान्यता कि शिक्षा , सामाजिक -आर्थिक व्यवस्था का एक अवयव नहीं है और इनके बीच के सम्बन्ध को दरकिनार करके भी शिक्षा में परिवर्तन की बात की जा सकती है ।
2 . शिक्षा में "राजनीति " नहीं लानी चाहिए और इसे एक गैर राजनैतिक मुद्दे के रूप में स्वीकारने की जरूरत है ।
3 . नीतियां तो हमेशा जन कल्याण के उद्देश्य से ही बंनती हैं और काम से काम उनका कागजी रूप तो सही होता है । गड़बड़ केवल उनके क्रियान्वयन में होती है ।
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