Thursday, 3 August 2017

सबका देश ..हमारा देश


राजनीतिक-आज़ादी, सारे भारतीयों का जीवन बदल देगी इस सपने से ओतप्रोत होकर सात दषक पहले भारत ने एक आज़ाद देष के तौर पर अपनी यात्रा षुरू की थी। ओपनिवेषिक आकाओं ने जो देश छोड़ गए थे, अधिकतर लोग उसे दुनिया का एक नितांत पिछड़ा और गरीब मुल्क मानते थे। हमारे संस्थापकों ने हमें न्याय,स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के महत्व को मानने वाला संविधान दिया। आज हमारे पास ऐसी अनेक बाते हैं, जिन पर गर्व किया जा सकता है। एक भारतीय के तौर पर इसमें सर्वोपरि संकल्प है हमारी विविधता का सम्मान करना। मज़हब, जाति, भाषा या नृजातीयता के आधार पर हमारे बीच भेदभाव पैदा करने के सारे प्रयासों को भारत के लोगों ने लगातार खारिज किया है। यह मामूली उपलब्धि नहीं है। भारत सर्वाधिक वैविध्यपूर्ण देष है, तब भी किसी भी मूल वाले के लिए यहां पर्याप्त जगह है। हर किसी का इसने स्वागत किया है। आज भारत जो कुछ है, उन सारे लोगों के योगदान से बुने गये एक खुबसूरत कालीन की तरह है। हमारा खान-पान, हमारी वेषभूषाएं, हमारे मकान, हमारे गीत, हमारी कविताएं, हमारी किताबें भारत की सांझा विरासत का प्रमाण है। हम भिन्न भाषाएं बालते हैं।  हममें से कुछ इबादत की भिन्न जगहों पर प्रार्थनाएं करते हैं। हमारा भोजन, हमारे रस्मों-रिवाज़ और हमारा पहनावा भिन्न है, फिर भी एक भारतीय होने का हमें गर्व है कि हमने आम जन के प्रेम और एकता से इस देष का निर्माण किया है। हमें  उन बदलावों पर भी नाज़ है, जो हमारे तमाम मज़दूरों और किसानों, वैज्ञानिकों और दस्तकारों, आदमियों और औरतों के सम्मिलित प्रयासों से हासिल किए गये हैं, जिनसे कि अब हम दावा कर सकते हैं कि अब हम दुनिया का सबसे पिछडा और गरीब मुल्क नहीं है।  
मगर, दासता की जंज़ीरों को तोड़ फेंकने के सात दषकों बाद क्या हम यह दावा कर सकते हैं कि न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के सिद्धांतों वाला एक भारत देष बनाने के सपने को हम सचमुच साकार कर पाए हैं ? गरीबों , सामाजिक तौर पर वंचितों , महिलाओं, कामगारों और किसानों को न्याय देने की लगातार उपेक्षा की गई है। एक छोटा सा श्रेष्ठि-वर्ग ही फला-फूला है और वही आज भारत की धन-दौलत और अस्मिता का सौदा विदेषियों के साथ करने को उतारू है। इससे पहले एक छोटे से वर्ग की इतनी संपन्नता भारत ने कभी न देखी थी न हीं पहले कभी इतने भारतीयों को भूखे पेट सोने को विवष होना पड़ा है। आज हम आज़ाद मुल्क जरूर हैं, मगर देष की बहुसंख्यक आबादी को हम भूख, अज्ञान और बेरोजगारी से मुक्ति नहीं दिला पाए हैं।
‘सामाजिक न्याय उपकार नहीं मानव-अधिकार है’
समाज के छोटे से ताकतवर वर्ग द्वारा जनता की बड़ी तादात के साथ किए जाने वाले अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले बहादुर स़्त्री-पुरूषों को स्वतंत्रता देने में भी हम नाकामयाब रहे हैं। जनता की एकजुटता को तोड़ने और बंधुत्न के मूल्य को तार-तार करने की कोशीशें  लगातार चलती रहती हैं। गरीब, सामाजिक तौर पर वंचित जन और महिलाएं ये तमाम अपने आप को समाज के हाषियों पर पाते हैं और एक सम्मानजनक जीवन के लिए लगातार लड़ते रहते हैं।
विदेषी ताकतों और विदेशी -कंपनियों के पास राष्ट्रीय-हित गिरवी रख देने का शासकों का इस कदर उतावलापन भी पहले कभी नहीं देखा गया। वे एक नये तरह के विकास की प्रस्तावना करते हैं, जो भारत में संपन्नता लाएगा। हमें यह भी कहा जाता है कि स्थानीय निगमों का अमीर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ का गठजोड़ भी एक न एक दिन गरीबों को लाभ पहुंचाएगा। किंतु इस तरह का विकास हमारे संसाधनों को लगातार लूटता है, हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है और स्थानीय नागरिकों को विकास की प्रक्रिया से बाहर धकेल उन्हें विकास का शरणार्थी बना देता है।
इस महान देश को एक अलग तरह के राष्ट्रवाद की दरकार है। एक राष्ट्रवाद, जो सभी लोगों और उनके रिवाज़ों का सम्मान करें। एक राष्ट्रवाद, जो गरीबों को तरज़ीह दें और अन्याय के सारे तरीकों के विरुद्ध हो। इस देष के नागरिक अब उस जनतंत्र की मांग करने लगे है, जिसमें उनकी भागीदारी सचमुच हो सकें। कामगार वर्ग अब एक ऐसे विकास की मांग के लिए एकजुट होने की तैयारी कर रहा है, जो उनसे शुरू हो, जिनको उसकी दरअसल ज़रूरत है, न कि उनसे जिन्होंने हमारे जल, जंगल, ज़मीन को कब्जा रखा है।
जन विज्ञान आंदोलन मानता है  िकइस देष की जलता ने बहुत इंतज़्ाार कर लिया है। हम एक बरस की यात्रा शुरू करने जा रहे हैं, जो 1947 की भावना को फिर से जिला सकें, यह संदेश  देने के लिए कि एकजुट जनता को कभी परास्त नहीं किया जा सकता। यह संदेश  देने के लिए भी कि अतीत में भी हम आम भारतीयों ने अलगाने की हर कोशिश  को हमेशा  नकारा ही है। एक वर्ष लंबा यह कार्यक्रम भारत की सांझी विरासत और विविधता का उत्सव होगा। उन तमाम आवाजों का उत्सव होगा, जो गरिमा और सबको न्याय का सम्मान करतीं हैं।
शांति, आत्म-निर्भर विकास और सभी के लिए गरिमा के संदेषों को देशके कोने-कोने तक फैलाने के लिए जन विज्ञान आंदोलन, नाटकों, गीतों, प्रदर्शनियों  और सिनेमा के जरिए लोगों तक जाएगा। यह महान देश को कुछ बेहतर की ज़रूरत है, माननम वाले सारे लोगों से हम साथ आने का आग्रह करते हैं।
‘देश की गरिमा के लिए बुनियादी ज़रूरतों को पूरा किया जाए’

No comments: