अखखल भारतीय जन विज्ञान नेट वर्क (AIPSN)
भारत ज्ञान विज्ञान समिति ( BGVS)
स्कूल शिक्षा और साक्षरता पर जन घोषणा पत्र
------------------------------------------ -
1. 2011 के जनगणना आंकड़ों के मुताखबक 27% लोग अशिक्षित हैं, जो कि हमारी जनसंख्या के 30 करोड से अधिक को शामिल करता है।
महिलाओं में साक्षरता की दर मात्र 65% है जिसका अर्थ है कि 35% महिलाएं अभी भी अशिक्षित हैं। दलित़ों, आदिवासियों , तटीय इलाक़ों के मछुआऱों और अन्य पिछड़ा वर्ग के समुदाय से संबंधित लोग़ों में साक्षरता की दर काफी कम है। हम वर्तमान स्थिति को कैसे सही ठहरा सकते हैं, खासतौर पर तब जबकि आजादी के 71 साल़ों के बाद भी हमारे देश में 30 करोड से अधिक अशिक्षित भाई-बहन मौजूद हैं।
2. UNESCO (यूनेस्को) द्वारा दुनिया भर में जारी की गई द एजुकेिन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2013-2014 (GMR) में भी
स्वीकार किया गया है कि अभी तक भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा 287 मिलयन (28 करोड 70 लाख) अशिक्षित लोग़ों की जनसंख्या है, जो कि वैश्विक योग का 37 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से इस तथ्य को रेखांकित करती है कि सर्वाधिक हासिये पर रहने वाले समूह़ों के लोग़ों को दशकों से शिक्षा के अवसऱों से
वंचित रखा जाना जारी है। रिपोर्ट आगे कहती है कि धनी युवा महिलाओं ने पहले ही
वैश्विक साक्षरता का स्तर हासिल कर लिया है लेकिन गरीब महिलाओं के लिए ये सन 2080 के आसपास संभावित हो पाने का अनुमान है, यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत के भीतर यह विशाल असमानता सर्वाधिक जरूरतमंद लोग़ों की ओर पर्याप्त रूप से समर्थन दे पाने में विफलता की ओर इशारा कर रही है।
3. भारतीय शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बडी शिक्षा प्रणालिय़ों में से एक है, जिसमें 2014-15 के लिए UDISE के आंकड़ों के मुताबिक
कक्षा 1 से 12 तक लगभग 260 मिलयन (26 करोड) बच्चे पढ़ रहे हैं, यह 36 राज्य़ों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित है, 683 जिल़ों में 15 लाख से ज्यादा स्कूल शामिल हैं; लगभग 75% प्राथमिक, 43% सेकेंडरी और 40% हायर सेकेंडरी स्कूल़ों का स्वामित्व और प्रबंधन सरकार करती है, बाकी के निजी क्षेत्र में हैं, जिनका स्वामित्व और प्रबंधन निजी एजेंसियां करती हैं। 2014-15 के U-DISE आंकड़ों के मुताबिक स्कूल़ों में दाखला लेने वाले 260 मिलियन बच्च़ों में, प्राथमिक शिक्षा 192 मिलियन (19 करोड 20 लाख) बच्च़ों को शामिल करती
है, सेकेंडरी शिक्षा में 38 (3 करोड 80 लाख) मिलियन बच्चे हैं और हायर सेकेंडरी शिक्षा में 24 मिलियन (2 करोड 40 लाख) बच्चे शामिल हैं। इन आंकड़ों में उच्चतर शिक्षा में दाखला लेने वाले बच्चे शामिल नहीं हैं जिसमें 30 मिलियन (3 करोड) से ज्यादा छात्र शामिल होते हैं।
जन शिक्षा ही एकमात्र प्रणाली है जिसका देश के अधिकांश परिवाऱों से सीधा संपर्क है।
4. वास्तविक संख्या पर कम विश्वसनीय आंकड़ों के साथ आज भी स्कूली आयु वर्ग के लाख़ों बच्चे अभी भी स्कूल से बाहर हैं। कई अध्ययऩों से स्थापित हुआ है कि कक्षाओं, शौचालय, और पीने का पानी जैसी मूलभूत अधोसंरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता भी कक्षाओं में उपस्थिति , टिके रहने और सीखने की गुणित्ता पर असर डालती है। RTE अधिनियम किसी स्कूल के लिए न्यूनतम भौतिक और शैक्षणिक अधोसंरचना निर्धारित करता है | दुर्भाग्य से, अखधकांश सरकारी स्कूल और बडी संख्या में निजी स्कूल RTE अधिनियम द्वारा प्रस्तावित मानदंड़ों को, इनके संपूर्ण अनुपालन की तारीख 31 मार्च 2015 के गुजर जाने के बावजूद पूरा नहीं करते हैं। प्राथमिक स्तर पर कक्षा 1 में दाखला लेने वाले 10 बच्च़ों में से सिर्फ 6 बच्चे कक्षा 8 तक पहुंचते हैं- यानी) 40% बच्चे कक्षा 8 से पहले ही औपचारिक प्रणाली को छोड देते हैं और वे स्कूल छोडने वाले बच्च़ों में सबसे अधिक हैं, 47% बच्चे कक्षा 10 में पहुंचने से पहले तक बाहर निकल जाते हैं। ये अधिकारिक आंकडे हैं- वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा चिताजनक है। SC/ST विद्यार्थियों और छात्राओं के पढ़ाई छोडने की दर ज्यादा है। भौतिक अधोसंरचना, पेयजल की सुविधाएं और बालिकाओं के लिए शौचालय की सुखिधाएं संतुष्टजनक स्तर से काफी कम हैं। देश में प्राथमिक स्कूल़ों में 80 लाख से अधिक शिक्षक हैं, और सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूल़ों में 20 लाख से अधिक हैं। लगभग 59% प्राथमिक शिक्षक सरकारी स्कूल़ों में हैं; इसके बावजूद देश के 8% प्राथमिक स्कूल एकल शिक्षक स्कूल हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि प्राथमिक स्कूल़ों में
9 लाख से अधिक शिक्षक़ों की कमी है; लगभग 14% सरकारी सेकेंडरी स्कूल़ों में प्रस्तावित न्यूनतम 6 शिक्षक नहीं हैं। शिक्षक़ों की रिक्तियां सबसे ज्यादा आदिवासी इलाक़ों में हैं, सुदूरवर्ती गांवों में जहां अपर्याप्त
सुविधाओं के कारण शिक्षक तैनाती से हिचकिचाते हैं
5. संपूणक रूप से RTE का क्रियान्वयन धीमा रहा है। सरकार द्वारा गंभीरता से लागू की गई एकमात्र योजना गैर- सहायता प्राप्त स्कूल़ों की स्थापना की अनुमति देना रहा है और कुछ राज्य़ों ने अपने खुद के पब्लिक स्कूलों को PPP मोड के तहत निजी एजेंसिय़ों को सौंपने का प्रयास भी किया है। प्राथमिक और सेकेंडरी शैक्षणिक स्तर के बीच में बडी संख्या में छात्रों का पढ़ाई छोडना एक संकेत है कि RTE
अधिनियम और NCF 2005 में प्राथमिक शिक्षा के लिए परभाषित अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा के मापदंड़ों को पूरा नहीं किया जा रहा है।
यह भारत के युवा नागररक़ों के कानूनी अधिकार के उल्लंघन का एक उदाहरण है।
6. 2017 में भारत ने अपने GDP (सकल घरेलू उत्पाद) का मात्र 2.7% शिक्षा पर खरच किया। संपूणक रूप से यह स्कूली शिक्षा के प्रति सरकार की न्यूनतम प्रतिबद्धता को प्रकट करता है। 1968 और 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा योजनाएं, और जैसा कि 1992 में संशोधित किया गया, सभी में शिक्षा पर राष्ट्रीय व्यय के लिए मानक के रूप में GDP के 6% की सिफारिस की गई थी। हालांकक, इन परामर्शों के बावजूद, शिक्षा पर खर्च लगातार इस स्तर के नीचे बना हुआ है। 1951-52 में 0.64% से, 1990-91 में यह अनुपात बढ़कर 3.84% हुआ है। तुलनात्मक
रूप से OECD देशों में खर्च का यही स्तर 5.3% के औसत पर है। जबकि क्यूबा अपनी GDP का 18% शिक्षा के लिए देता है, मलेशिया, कीनिया और यहां तक कि मलावी भी 6% के बेंच मार्क को पार करने में समर्थ हुए हैं | दुनिया के सभी देशों के लिए GDP के प्रतिशत के रूप में सरकारी खर्च का औसत भार 4.9% है, जो कि भारत के खर्च से काफी ऊपर है। इस तुलना से साफ तौर पर भारत द्वारा की गई
प्रतिबद्धता पर अमल करने में जानबूझकर की गई उपेक्षा का पता मिलता है। आम चुनावों के ठीक पहले 1 फरवरी 2019 को पेश किए गए अंतरिम केंद्रीय बजट में भी शिक्षा के प्रति कें द्र सरकार लापरवाही स्पष्ट है|
7. यह साफ संकेत है कि सरकार नव उदारनीतिय़ों के नुस्खे को कायम रखते हुए, सभी बच्च़ों को शिक्षा देने के अपने कर्तव्य से पीछे हट रही है। और साथ ही नवउदार आकाओं के आदेशानुसार ‘गुणित्तापूणक शिक्षा’ की भ्रामक धारणा के तहत, सरकार अपने स्ियं के स्कूल़ों और शिक्षक़ों को कम आंककर, सार्वजनिक संपत्तियों को निजी उद्यमिय़ों और कॉरपोरेट ताकत़ों को सौंपने के लिए नीतियां बना रही है।
इस संदर्भ में, हम भारत के लोग मांग करते हैं -
1. शैक्षणिक नीतियों का गठन संवैधानिक दायित्व पर आधारित होना चाहिए : भारत एक धर्म निरपेक्ष और लोकतान्त्रिक देश है और शिक्षा का मूल दायित्त्व नागरिक़ों का पोषण करना है, संविधान के प्रति प्रतिबद्धता और संवैधानिक मूल्य़ों मे विश्वास के साथ तैयार की जाने वाली कोई भी शिक्षा नीति संवैधानिक दृष्टि के अनुसार विकसित की जानी चाहिए जैसा कि प्रस्तावना में कहा गया है- समाजवाद ,
धर्मनिरपेक्षता, समानता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र ये पाठ्यिक्रम, शिक्षािशास्त्र और शैक्षणिक प्रशासन के निर्माण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए ।
2. शिक्षा प्रणाली में कोई भी सुधार लोकतंत्र, समानता और धर्म निरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत़ों को कायम रखना चाहिए । सामाजिक न्याय और समानता गैर पराक्रम्य हैं : शैक्षणिक सुधार के लिए एक दृष्टि की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार ह़ोंगी:
i. शिक्षा एक सहायक प्रकिया नहीं है, बल्कि न्यायसंगत और सतत सामाजिक विकास के लिए एक परिवर्तनकारी प्रकिया है। शिक्षा को धर्मनिरपेक्षता पर आधाररत संवैधानिक मूल्य़ों को बनाए रखते हुए राष्ट्र निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए , धर्म , भाषा और जातीयता के बहुलवाद को बढ़ावा देना चाहिए जो कि भारतीय लोकतंत्र के हिस्से का निर्माण करता है और वैज्ञानिक स्वभाव को
अंतर्विष्ट करता है।
ii. शि क्षा महज एक व्यखि-कें कद्रत कररयर-उन्मुख उद्यम नहीं है। यह एक रिनात्मक सामाखजक प्रयास होना िाखहए। खिक्षा को
छात्ऱों की ज्ञान के खनमाकण और खिस्तार की क्षमताओं, खििेिनात्मक सोि प्रकटीकरण की क्षमता, और खिज्ञान की पद्धखत पर
आधाररत खिश्लेषणात्मक और रिनात्मक कौिल को खिकखसत करना िाखहए।
iii. खिक्षण-सीखने की प्रकिया को अपने आपमें मजदार एक खििेिनात्म और रिनात्मक गखतखिखध के रूप में खडजाइन ककया जाना
िाखहए, खजसमें खिक्षक और छात्र एक साथ भाग लें। छात्ऱों के बीि क्षमताओं के खिकास को गखतखिखध उन्मुख अन्िेषण, पठन,
लेखन और प्रस्तुखतकरण, समूह ििाक, िाद-खििाद, प्रायोखगक गखतखिखधय़ों और क्षेत्रीय पररयोजनाओं इत्याकद के माध्यम से सुगम
बनाना िाखहए।
iv. खिक्षा एक सांस्कृखतक प्रकिया होनी िाखहए। छात्र को एक समझ खिकखसत करनी िाखहए जो उन्हें व्यापक सामाखजक संदभक में
उनकी खुद की रुखिय़ों और क्षमताओं का पता लगाने में मदद करे। यह उसे अपने कायक उपकरण के रूप में करने के बजाय
रिनात्मक रूप से करने में सक्षम बनाती है, पररितकनकारी कारकिाई के खलए सामूखहक रूप से काम करना।
v. इससे एक कैम्पस कल्िर (पररसर संस्कृखत) का खिकास भी होता है जो कक, लोकतांखत्रक, धमकखनरपेक्ष और समानाखधकारिादी है,
जहां सामाखजक न्याय का आिासन होता है और ककसी के साथ भी जाखत, िगक, चलग, भाषा, धमक या नस्ल के आधार पर भेदभाि
नहीं होता। िहां पर छात्ऱों की क्षमताओं के सिाांगीण खिकास के खलए स्थान होगा जो कक जहां तक संभि हो उनकी व्यखिगत
रुखिय़ों और प्राथखमकताओं का भी ध्यान रखे।
vi. इस तरह की संरिना में सभी िैक्षखणक मामल़ों में प्राथखमक खनणकय िैक्षखणक समुदाय में खनखहत होगा खजसमें खिक्षक और छात्र
िाखमल ह़ोंगे। हालांकक, उन्हें सामाखजक रूप से समुदाय के प्रखत खजम्मेदार होना होगा।
3. RTE अखधखनयम के दायरे को जन्म से 18 िषक तक, अंतराकष्ट्रीय मान्यता प्राप्त बिपन की पररभाषा के अनुसार, ECCE, प्री स्कूल और
सेकें डरी के साथ हायर सेकें डरी खिक्षा को कानूनी अखधकाऱों के रूप में िाखमल करक,े खिस्ताररत ककया जाए: सभी नागररक़ों खासतौर पर
18 साल से कम के बच्च़ों को खिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की खजम्मेदारी होना िाखहए, िह भी सामाखजक न्याय, खनष्पक्षता, समानता
और गुणित्ता सुखनखित करके समािेिी खिक्षा। खिक्षा को पडोसी स्कूल़ों के साथ, एक सामान्य स्कूल प्रणाली के माध्यम से, धमकखनरपेक्ष और
लोकतांखत्रक खसद्धांत़ों को बनाए रखना िाखहए। सभी सामाखजक-आर्थथक स्तर के बच्च़ों को एक ही स्कूल में एक साथ, बगैर ककसी भेदभाि
के पढ़ना िाखहए। आंगनिाडी प्रणाली और कें द्ऱों को मजबूत करके 3-6 साल की उम्र के सभी बच्च़ों को गुणित्तापूणक िुरुआती बाल देखभाल
और खिक्षा प्रदान की जानी िाखहए। और जहां पर भी आिश्यक हो I 3 साल से छोटे बच्च़ों के खलए आिश्यक देखभाल कें द्र के रूप में ऐसे
िेि (पालनाघर) भी होना िाखहए, जहां पर कामकाजी माता-खपता अपनी आजीखिका के भाग के रूप में काम पर जाते समय अपने बच्चे को
आत्मखििास के साथ रख सकें ।
4. सच्चे िब्द़ों और भािनाओ में मानदंड़ों और मानक़ों के साथR TE अखधखनयम का पूणक अनुपालन और कियान्ियन सुखनखित करें और इसके
कियान्ियन के खलए सरकार को जिाबदेह बनाए: ं NCF 2005 (u/s 7 में अखधसूखित) में पररभाखषत गुणित्ता खिक्षा के मानदडं ़ों के साथ
RTE अखधखनयम की धारा 8 में अच्छी गुणित्ता की खिक्षा के खलए जनादेि को कें द्र और राज्य दोऩों सरकाऱों द्वारा गखतिील रूप से
कियाखन्ित ककया जाना िाखहए और इसकी लगातार और व्यापक खनगरानी होनी िाखहए। RTE की भािना को प्राप्त करने के खलए
गुणित्तापूणक खिक्षा के छह घटक़ों (पाठ्यिम और खसलेबस, पाठ्यपुस्तकें और TLMs, खिक्षक़ों और अखधकाररय़ों का व्यािसाखयक खिकास,
मूल्यांकन, प्रिासखनक सहयोग और सामुदाखयक सहभाखगता) को खिखिष्ट जिाबदेही के साथ, गंभीरतापूिकक कियाखन्ित ककया जाना
िाखहए। प्रणाली को समुदाय की रिनात्मक भागीदारी के साथ बच्चे का िारीररक, सामाखजक और भािनात्मक खिकास और सुरक्षा
सुखनखित करना िाखहए।
5. समुदाय के सीमांत िगों (SC,ST,गांि की लडककय़ों, अल्पसंख्यक समूह़ों, खिस्थाखपत़ों इत्याकद)के खलए एक खिक्षा नीखत की कठोर समीक्षा
और सुधार एक खमिन मोड में ककए जाने की आिश्यकता ह: ै इन समूह़ों के बारे में सभी आंकडे मामल़ों की एक दखु द और खेदजनक खस्थखत
प्रकट करते हैं। लाख़ों बच्चे अपने खिक्षा के मानि अखधकार से िंखित कर कदए जाते हैं क्य़ोंकक उनके माता-खपता उन्हें स्कूल में रखने में सक्षम
नहीं हैं। यह प्रणाली इस समूह के खलए समानतापूणक गुणित्ता िाली खिक्षा की मांग को प्रिासखनक और िैक्षखणक दोऩों ही तरह से घोर
उपेक्षा करती है। पाठ्यिम, पाठ्यपुस्तकें और सभी संबंखधत संसाधन इन सीमांत िगक के लोग़ों के संसाधऩों और खनखहत क्षमता और
आिश्यकताओं की कभी पूर्थत नहीं करते हैं। इससे इन सीमांत िगक के लोग़ों के खलए खिक्षा नीखत की कठोर समीक्षा और खनमाकण की
आिश्यकता पैदा होती है।
6. सभी खिद्यालय़ों और ECCE कें द्ऱों में सामाखजक समािेिन और सुरखक्षत और सकुिल स्कूल िातािरण के प्रािधान को सुखनखित करने के
खलए कडे और बारीक खनगरानी के कदम उठाएं और आकदिासी, दखलत, अल्पसंख्यक बच्च़ों, खििेष रूप से लडककय़ों और खििेष जरूरत़ों
िाले बच्च़ों और अन्य कमजोर समूह़ों द्वारा खिक्षा के खलए सामना की जाने िाली बाधाओं का समाधान क: रहें में उस तरह की खिक्षा प्रणाली
के कियान्ियन को सुखनखित करना है जो कक सामाखजक न्याय, खनष्पक्षता, समानता और गुणित्ता की उपलखब्धय़ों को प्रदान और खितररत
करे।
7. खिक्षा को एक पररितकनकारी िखि बनना िाखहए, मखहलाओं का आत्मखििास खनर्थमत करना िाखहए, और समाज में उनकी खस्थखत में
सुधार करना और असमानताओं को िुनौती देना िाखहए: UNESCO का खिक्षा 2030 का एजेंडा मान्य करता है कक लैंखगक समानता के
खलए के खलए एक ऐसे दखृ ष्टकोण की आिश्यकता ह ै जो ‘ सुखनखित करता ह ै कक बालक और बाखलकाओं, मखहला और पुरुष न केिल संपूणक
खिक्षा िि तक पहुंि प्राप्त करें, बखल्क िे खिक्षा में और उसके माध्यम से समान रूप से सिि ह़ों।‘ गरीबी, भौगोखलक अलगाि, अल्पसंख्यक
खस्थखत, खिकलांगता, बाल खििाह और गभाकिस्था, चलग आधाररत-चहसा, और मखहलाओं की खस्थखत और भूखमका के बारे में पारंपररक सोि,
ऐसी कई बाधाओं में से एक हैं जो कक खिक्षा में मखहलाओं और बाखलकाओं की भागीदारी, पूरी करने और लाभ लेने के अखधकार के संपूणक
उपयोग के रास्ते में खडी हैं।
8. 18 साल की उम्र तक बाल श्रम का पूरी तरह उन्मूलन सुखनखित करें और बाल श्रम (खनषेध और खिखनयमन) संिोधन अखधखनयम 2016 की
धारा 3 को हटाएं जो कक ‘पाररिाररक उद्यम’ में बाल श्रम को िैध करता ह:ै ककसी भी बच्चे को ‘पाररिाररक उद्याम’ सखहत ककसी भी
स्थापना में काम करने की अनुमखत नहीं दी जाएगी। कें द्रीय कानून, बाल श्रम (खनषेध और खिखनयमन) अखधखनयम, 2016 बच्चे के अखधकाऱों
का एक उल्लंघन है और इसे एक बार में समाप्त कर कदया जाना िाखहए। यह गरीब़ों के बच्च़ों के खलए एक अपूणीय अन्याय प्रस्तुत करेगा।
9. ‘सामान्य स्कूल प्रणाली’ सुखनखित करें और बहु-स्तरीय खिक्षा प्रणाली से बिें जो खिक्षा में असमानता का कारण बनती :ह प्रै त्येक राज्य में
स्कूली खिक्षा के खलए एक ही बोडक होना िाखहए। और सभी स्कूल़ों को उस राज्य बोडक से संबद्ध होना िाखहए। ितकमान CBSE स्कूल़ों या
ितकमान में अन्य बोडों से संबद्ध स्कूल़ों को एक खनधाकररत समय सीमा के भीतर संबंखधत राज्य बोडों से संबद्ध होना िाखहए (जैसा कक
यिपाल कमेटी की ररपोटक ‘खबना बोझ के खिक्षा’ में सलाह दी गई है)। उसके बाद राज्य बोडक की संबद्धता के बगैर स्कूल़ों को ककसी राज्य में
संिालन की अनुमखत नहीं होगी। कें द्र सरकार के स्कूल़ों को कें द्र सरकार के कमकिाररय़ों या राज्य के बाहर स्थानांतरण िाली अन्य नौकरी
िाले कमकिाररय़ों के बच्च़ों के दाखखले की अनुमखत होना िाखहए। लाभ कमाने के उद्देश्य से संिाखलत होने िाले सभी स्कूल़ों को प्रखतबंखधत
ककया जाना िाखहए।
10. सािकभौखमक रूप से सहमखत प्राप्त खिक्षा खित्तपोषण बेंिमाकक और कोठारी आयोग की खसफाररि़ों के साथ ही राष्ट्रीय नीखतय़ों की
पररकल्पना के अनुसार GDP का 6% उपलब्ध कराए:ं भारतीय खिक्षा में अक्षम्य सीमा तक संसाधऩों की कमी रखी गई ह।ै सरकार को एक
सतत बढ़ती, खिस्ताररत होती, उखद्वकासी, समािेिी प्रणाली की सभी आिश्यकताओं के खलए, खिक्षा के खलए GDP का 6% सुखनखित
करना िाखहए खजसमें को भी बच्चा छूट न जाए। हर स्तर पर खिक्षा के संसाधन उपलब्ध कराने की खजम्मेदारी सरकार की होनी िाखहए।
नीखतय़ों और रणनीखतयां लागू करने और आिश्यक खित्तीय प्रािधान करने सखहत खिक्षा उपलब्ध कराने की खजम्मेदारी सरकार को उठानी
होगी। खिक्षा का खनजी प्रािधान खसफक सरकारी प्रािधान के अखतररि रूप में होना िाखहए न कक उसके एक खिकल्प के रूप में। गैर-
लाभकारी धमक खनरपेक्ष परोपकारी संस्थाओं के खनजी प्रािधाऩों पर, उखित मानक़ों और मानदंड़ों के माध्यम से,खििार ककए जाने की
आिश्यकता है। खिक्षा कोई िस्तु नहीं है। यह ज्ञान हाखसल करने की सुखिधा है, खजसका उपयोग व्यखि और समाज के फायदे के खलए ककया
जाना िाखहए। इसखलए ककसी को खिक्षा में व्यापार करने और लाभ कमाने की अनुमखत नहीं दी जानी िाखहए।
11. RTE की खनरस्त धारा 16 को बहाल करना- खिक्षा के खलए बच्च़ों के मौखलक अखधकार की रीढ़R- TE का कियान्ियन और गुणित्तापूणक
सीखने के माहौल का प्रािधान सुखनखित करें , बच्च़ों को रोके रखने और स्कूल से खनकालने के खलए प्रणालीगत‘अ सफलता’ के बोझ को न
रखें: यह एक आपखत्तजनक खस्थखत है कक खिक्षा की गुणित्ता में सुधार केिल बच्च़ों को खिक्षा से खनकालने से ही संभि है। भारतीय संसद ने
RTE की धारा 16 में संिोधन ककया और एक ऐसी नीखत िुरू की जो प्रणाली/स्कूल को परीक्षा आयोखजत करके ककसी भी कक्षा में रोके
रखने में सक्षम करती है। RTE में (1-8 कक्षा में 6-14 साल के बच्च़ों के खलए) दो अलग-अलग धाराएं हैं, खजनका नाम है धारा 16- कोई भी
बच्चा “प्राथखमक खिक्षा पूरी करने से पहले (ककसी कक्षा में) रोका नहीं जाएगा या स्कूल से बाहर नहीं ककया जाएगा ’; और 30(1)-“ प्राथखमक
खिक्षा पूरी करने से पहले ककसी भी बच्चे को कोई भी बोडक परीक्षा उत्तीणक करने की आिश्यकता नहीं होगी “।
सि कहा जाए तो RTE स्कूल़ों में िार्थषक परीक्षाओं के बारे में कुछ भी नहीं कहता है खजसके बारे में एक खमथक व्यापक रूप से प्रिाररत
ककया जाता है, कक यह परीक्षा कक अनुमखत नहीं देता इसखलए इसमें संिोधन की आिश्यकता है। RTE इस प्रकार एक स्कूल परीक्षा और
एक कें द्रीयकृत परीक्षा के बीि अंतर करता है- प्रथम को सीखने के संदभक के खनकट होने की आिश्यकता है जो कक बच्चे की संस्कृखत, भाषा
और माहौल में खनखहत हो। दसू री तरफ बोडक परीक्षा, एक दरू ी पर स्थाखपत कर दी गई ह,ै उन लोग़ों के द्वारा जो कक बच्चे के सामाखजक संदभक
से बहुत दरू हो सकते ह ैं और यह भी नहीं जानते कक स्कूल में क्या खिक्षण-सीखना हो रहा ह।ै इसके अलािा, बोडक परीक्षाएं आमतौर पर
प्रखतस्पधी होती हैं, और इसखलए उच्च प्रदिकनकारी छात्ऱों को भी अखधक तनाि की ओर अग्रसर करती हैं। धारा 16 के खलए आखधकाररक
तकक: 2009 में RTE के साथ आखधकाररक मंत्रालय नोट में धारा 16 के खलए इस प्रकार तकक कदया गया है कक : “रोके नहीं रखने” का
प्रािधान इसखलए बनाया गया है क्य़ोंकक अक्सर परीक्षाओं का इस्तेमाल खराब अंक लाने िाले छात्ऱों को बाहर करने के खलए ककया जाता
है। एक बार ‘अनुत्तीणक’ (फेल) घोखषत ककए जाने पर, बच्चे या तो कक्षा का दोहराि करते हैं या पूरी तरह से स्कूल छोड देते हैं। ककसी बच्चे को
कक्षा दोहराने के खलए मजबूर करना मनोबल खगराने िाला और हतोत्साखहत करने िाला है। कक्षा को दोहराने से ककसी बच्चे को कफर से एक
साल से खलए उसी पाठ्यिम से जूझने के खलए कोई खििेष संसाधन नहीं खमलता है”। यह दािा ककया गया कक “हर बच्चे में सीखने की समान
संभािना होती है, एक ‘धीमा’ सीखने िाला या एक ‘असफल’ बच्चा, उस बच्चे में अंतर्थनखहत ककसी कमी के कारण नहीं है, लेककन
अखधकांित: सीखने के माहौल और बच्चे की सहायता के खलए आपूर्थत प्रणाली, उसकी क्षमता के अहसास की अपयाकप्तता के कारण है, खजसका
अथक प्रणाली की खिफलता है, न कक बच्चे की। इसके खलए बच्चे को (कक्षा में) रोककर दंखडत करने के बजाय प्रणाली की गुणित्ता में सुधार के
समाधान की आिश्यकता है। ऐसा कोई अध्ययन या िोध नहीं है जो सुझाि देता है कक बच्चे के फेल होने से उसकी सीखने की गुणित्ता में
सुधार होता है। बखल्क, कई बार बच्चा स्कूल/सीखना पूरी तरह छोड देता है “। यह 2009 में प्रणाली की स्पष्ट स्िीकारोखि थी, अपनी स्ियं
की गुणित्ता सुधारने के खलए RTE लाने के खलए। उसने पयाकप्त योग्य खिक्षक, पयाकप्त संसाधन िाले स्कूल, एक साथकक पाठ्यिम, अच्छी
प्रेरणादायक पाठ्यपुस्तकें और अन्य खिक्षण सामखग्रयां, और सबसे महत्िपूणक मूल्यांकन की एक अच्छी प्रणाली सखहत- एक अच्छा सीखने का
माहौल उपलब्ध कराने में अपनी खुद की असफलता की खजम्मेदारी ली। ऐसा नहीं हुआ, जैसा कक RTE का अनुपालन नहीं करने िाले
स्कूल़ों की बडी संख्या और उसके कियान्ियन में कमी से देखा गया है।
कम से कम संसद सदस्य़ों का ये कतकव्य है कक उनके पास उपलब्ध दस्तािेज़ों को देखें और ये दस्तािेज उन्हें बताएंगे कक देि में िास्तखिक
खस्थखत क्या है। यह देि को इस प्रकार बताता ह: ै
1. 2014-15 में प्राथखमक स्तर पर (स्कूल़ों में) रुकने की दर 83.7% थी और आरंखभक स्तर पर यह 67.4% खजतनी कम थी। मोटे तौर पर
कक्षा 1 में दाखखला लेने िाले प्रत्येक 10 छात्ऱों में से िार छात्र कक्षा 8 पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड रहे थे। (U-DISE, 2014-15)
2. खिक्षक की अनुपखस्थखत प्रत्येक कदन 25% से अखधक आंकी गई है, खजसे छात्ऱों के सीखने के खराब प्रदिकन के कारण़ों में से एक के रूप में
पहिाना गया है।
3. देि के लगभग 8% प्राथखमक स्कूल एकल खिद्यालय हैं। यह खस्थखत मािक 2015 के बाद भी है जो कक RTE 2009 के सभी पहलुओं का
अनुपालन करने की अंखतम तारीख थी।
4. यह अनुमान लगाया गया है कक प्राथखमक स्कूल़ों में 9 लाख से अखधक खिक्षक़ों की कमी है; लगभग 14% सरकारी सेकें डरी स्कूल़ों में
प्रस्ताखित न्यूनतम 6 खिक्षक नहीं ह।ैं आमतौर पर खिक्षक़ों की ररखियां आकदिासी इलाक़ों और दरू दराज के गांि़ों में अखधक ह ैं जहां पर
अपयाकप्त सुखिधाओं के कारण खिक्षक तैनात होने से खहिकते हैं।
5. हमारे देि के कुछ राज्य़ों में बडी संख्या में अप्रखिखक्षत खिक्षक हैं जो कक RTE के मुताखबक पेिेिर तरीके से प्रखिखक्षत नहीं हैं। RTE की
अखनिायकता है कक सभी खिक्षक पेिेिर रूप से प्रखिखक्षत ह़ों और खनरंतर मूल्यांकन और बच्च़ों के सीखने सुधार करने में सहायक ह़ों।
6. देि के कई भाग़ों में खिक्षक़ों की खनयुखि और स्थानांतरण भ्रष्टािार का एक बडा माध्यम बन गया है। क्या हमें इन सभी प्रणालीगत
खिफलताओं के खलए बच्च़ों को खजम्मेदार बनाना िाखहए? लेककन हमारी संसद के फैसले ने कहा कक ये बच्चे ही हैं जो इस खेदजनक खस्थखत के
खलए खजम्मेदार हैं। (और इस तथाकखथत गुणित्ता के पराभि को साखबत करने के खलए कोई सबूत या तुलनात्मक िैज्ञाखनक अध्ययन नहीं
है।) यह बहुत स्पष्ट है कक मुद्दा “रोकना या नहीं रोकना नहीं है”। यह एक बडा सिाल है कक बच्चे फेल क्य़ों होते हैं। और उसके खलए खजम्मेदार
सभी कौन हैं। और कौन से िह बच्चे हैं और उनकी क्या सामाखजक आर्थथक और सांस्कृखतक पृष्ठभूखम है खजन्हें खनकाल कदया गया या व्यिस्था
से बाहर कर कदया गया। इसखलए मूल कतकव्य यह पहिानना है कक बच्चे क्य़ों पाठ्यिम के उद्देश्य़ों के मुताखबक प्रदिकन नहीं कर रहे हैं और
छात्ऱों के कंध़ों पर पूरी खजम्मेदारी डालने और उन्ह ें एक जाद ू की छडी “परीक्षा” का उपयोग करके मुख्य धारा की खिक्षा से बाहर धकेलने के
बजाय एक सामाखजक रूप से उन्मुख दखृ ष्टकोण के साथ मुद्दे को हल करने के खलए समाधान खोजना ह।ै यहां पर सरकार- बच्च़ों को दोषी के
रूप में रखकर- न्यूनतम सुखिधाएं प्रदान करने की अपनी प्राथखमक भूखमका से पीछे हट रही है जो सभी बच्च़ों को गुणित्तापूणक खिक्षा प्रदान
करती है।
इसखलए एक बार कफर एक बार कफर हमें बहस करनी होगी
1. RTE की धारा 16 की बहाली के खलए
2. 12 साल तक सभी बच्च़ों के खलए गुणित्तापूणक खिक्षा की सुखिधा प्रदान करने के खलए
3. ककसी बच्चे को फेल करके कोई भी गुणित्ता नहीं सुधार सकता ।
12. सरकारी स्कूल़ों को गैर व्यिहाररक मानते हुए उन्हें बंद करने का काम खत्म क;र ेंउन्हें पुनजीखित करें खजन्हें RTE 2009 के अनुमोदन के
बाद बंद कर कदया गया है या कफर ककसी अन्य स्कूल के साथ खिलय कर कदया गया :ह ै
सभी उपलब्ध आंकडे RTE के अनुपालन में सरकार की खिफलता को दिाकते हैं। लेककन इसके साथ ही सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
सभी बच्च़ों को सुलभता और गुणित्तापूणक खिक्षा उपलब्ध कराने के अपने कतकव्य से पीछे हट रही है। खिखभन्न स्रोत़ों से प्राप्त ररपोटों के
मुताखबक, कें द्र गैर व्यिहाररक का ठप्पा लगाकर और साथ ही “दक्षता बढ़ाने” के भाग के रूप में लगभग 2.6 लाख सरकारी स्कूल़ों का
“स्थान-खिखिष्ट खिलय या बंद करने इरादा कर रहा है। स्कूल़ों के खिलय और बंद करने के पररणामस्िरूप स्कूल से बाहर खनकाले जाने िाले
बच्च़ों, खासतौर पर सीमांत और िंखित समुदाय के बच्च़ों और लडककय़ों की संख्या बढ़ रही है। बंद करने या खिलय की नीखत भी RTE
अखधखनयम के पीछे की मूल भािना का उल्लंघन है, कई राज्य़ों में; खिलय ककए गए स्कूल बस्ती के 1 ककमी के दायरे से बहुत दरू ह।ैं बच्चे कई
कारण़ों से नए स्कूल में जाने से खहिककिाएंगे जैसे कक स्कूल की बढ़ी हुई दरू ी, और साथ ही उच्च जातीय इलाक़ों में सांस्कृ खतक कारण़ों से भी
जहां खनिली जाखतय़ों और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे भयभीत महसूस करते हैं, और साथ ही सुरक्षा के कारण़ों से भी। यह 1 ककलोमीटर
के दायरे में स्कूल सुखनखित करने की सरकार की जिाबदेही को बाखधत करता है। स्कूल़ों के खिलय का प्रािधान बनाकर या सरकारी स्कूल़ों
को बंद करके खनजीकरण का मागक प्रिस्त ककया जा रहा है। सुखिधाओं की कमी के कारण सरकारी स्कूल़ों को बंद करने का कठोर कदम
उठाने के बजाय, बुखनयादी ढांिे और धन के आिंटन के मूल मुद्दे को हल करने खलए उपाय ककए जाने हैं और इन स्कूल़ों में बुखनयादी ढांिे
और अन्य सुखिधाओं को बेहतर बनाने के खलए आिश्यक सहयोग ककया जाना है।
13. प्रखत कक्षा िगों में खनयखमत खिक्षक भती कर:ें RTE के मानदडं ़ों के मुताखबक खिक्षक़ों की उपखस्थखत और छात्र-खिक्षक संपकक प्रत्येक बच्चे का
अखधकार है। RTE के 9 साल़ों के बाद भी सरकार कम से कम दो खिक्षक़ों के मानदंड को सुखनखित कर पाने की खस्थखत में भी नहीं है। यकद
हम गुणित्तापूणक खिक्षा िाहते हैं तो प्रत्येक कक्षा िगक के खलए एक खिक्षक अपररहायक है। खिक्षक़ों की कमी भारतीय स्कूल़ों की एक बडी
बीमारी है। इस बात को सुखनखित करना िाखहए कक सभी स्कूल़ों में पयाकप्त संख्या में खिक्षक खनयुि ककए जाएं। स्कूल़ों में प्रत्येक कक्षा में एक
खिक्षक जरूर खनयुि होना िाखहए। िारीररक खिक्षा, कला, कायाकत्मक खिक्षा इत्याकद को पाठ्यिम का खहस्सा समझा जाना िाखहए और
पाठ्यिम के इन खहस्स़ों के खलए भी खिक्षक खनयुि होना िाखहए। हमें खििेष आिश्यकता िाले बच्च़ों की समस्याओं का समाधान करना है
और उनकी खििेष आिश्यकताओं के समाधान के खलए योग्य खिक्षक भी आिश्यकता का आकलन करते हुए खनयुि ककए जाना िाखहए।
14. खिक्षक़ों के व्यािसाखयक खिकास के खलए कायकिम सुखनखित कर: ें खिक्षक सभी के खलए समािेिी और समान गुणित्तापूणक खिक्षा प्राप्त करने
की
कुं जी हैं। खिक्षा जीिन बदल देती है: यह आर्थथक और सामाखजक खिकास की िालक है; यह िांखत, सखहष्णुता और सामाखजक समािेि को
बढ़ािा देती है; और गरीबी उन्मूलन और व्यखिगत पूर्थत प्राप्त करने के खलए महत्िपूणक है। इसखलए स्थानीय खिखिष्टताओं पर खििार करते
हुए, खिक्षक़ों के रूपांतरण के खलए कायकिम होने िाखहए (खिक्षक़ों की योग्यता में खिकास सखहत)।
15. संखिदा खिक्षक़ों की खनयुखि करके खिक्षक़ों का िोषण बंद कर: ें पैरा टीिर, खिक्षा कमी इत्याकद खिखभन्न नाम़ों से संखिदा खिक्षक़ों की भती
करने की प्रिृखत्त है, खजन्हें न्यूनतम िेतन ितों का पालन नहीं करते हुए कम िेतन कदया जाता है और इस तरह इस िगक का िोषण ककया
जाता है। यह बंद होना िाखहए क्य़ोंकक खनयखमत खिक्षक गुणित्तापूणक खिक्षा प्रदान करने के खलए पूिक ितक है।
16. संखिधान में खनखहत मूल्य़ों को बढ़ािा देने के खलए संिैधाखनक लक्ष्य़ों के अनुरूप राष्ट्रीय पाठ्यिम की रूपरेखा तैयार क: रहें मारे जैसे
बहुधमी, बहु-सांस्क-खतक और बहु-जातीय समाज में इन मूल्य़ों के अियि़ों पर सािधानीपूिकक खििार करने की आिश्यकता है। स्पष्ट रूप
से, इन मूल्य़ों की पहिान ककसी खास धमक से नहीं होनी िाखहए। लोकतंत्र, धमकखनरपेक्षता, लैंखगक समानता, श्रम का सम्मान, खनष्पक्षता
और समानता और सामाखजक न्याय और िैज्ञाखनक स्िभाि के खििार को पाठ्यिम में जोडा जाना िाखहए। खिक्षा कोई साधन प्रकिया नहीं
है, बखल्क एक बदलाि की प्रकिया है जो एक न्यायसंगत और सतत सामाखजक खिकास के अनुकूल है। राष्ट्र की खिखिधता को कायम रखते हुए
पाठ्यिम का खिकास करें। पाठ्यिम तैयार करते समय, खिखभन्न पहलुओं की खभन्नता और खिखिधता को ध्यान में रखना होगा- भौगोखलक,
जलिायु, भाषाई, सांस्कृखतक पहलू। एक संतुखलत पाठ्यिम में सािकभौखमक, राष्ट्रीय, उप राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय तत्ि़ों का सामंजस्य
होना िाखहए। कुछ सािकभौखमक तत्ि हैं जो हर जगह पाठ्यिम का खहस्सा बनते हैं। राष्ट्रीय तत्ि भी हैं जो पूरे देि में समान होने िाखहए।
इसखलए, पाठ्यिम को प्रत्येक राज्य के लोग़ों की िास्तखिकता और सरोकार प्रदर्थित करना िाखहए। एक लिीला पाठ्यिम सामाखजक
बदलाि से उत्पन्न िुनौखतय़ों का सामना करने के खलए खिकखसत होता रहेगा। इस तरह तैयार पाठ्यिम िंखित िगों सखहत सभी लोग़ों के
सामाखजक खिकास के प्रखत लखक्षत होना िाखहए। इसखलए खनम्नखलखखत पहलू सिाकखधक महत्िपूणक हैं।
i. सीखने के माध्यम के रूप में मातृभाषा का उपयोग: हमें इसे गैर-परािम्य खस्थखत के रूप में तय करना होगा। आधुखनक खिक्षा के सभी
िैखक्षक खसद्धांत और समझ सीखने के माध्यम के रूप में मातृभाषा के महत्ि को कायम रखते हैं। ककसी भी समझदार समाज में सीखने की
भाषा केिल बच्चे की मातृभाषा हो सकती ह।ै हालांकक, आज के िैिीकरण की दखु नया में अंग्रेजी के महत्ि पर खििार करते हुए, इसे प्रभािी
रूप से पढ़ाया जाना िाखहए, इसे खद्वतीयक या खिदेिी भाषा के रूप में पढ़ाने के खलए, कई गैर-अंग्रेजी भाषी देि़ों में अपनाए गए िैक्षखणक
खिखधय़ों का उपयोग करना िाखहए।
ii. पूरे देि में सभी बच्च़ों के खलए कोई भी एक भाषा अखनिायक नहीं करना िाखहए: बच्चे को मातृभाषा के अलािा अन्य भारतीय भाषाओं से
पररखित कराने का प्रयास करना िाखहए। मानि में बहु-भाषी सीखने की स्िाभाखिक क्षमता होती है, बिते की सीखने के िुरुआती िषों में
मातृभाषा में एक ठोस नींि रखी जाए।
iii. खिक्षा में सभी सांप्रदाखयक एजेंडे और सबूत़ों द्वारा न समर्थथत इखतहास के एक तककहीन दृखष्टकोण को बढ़ािा देने का खिरोध क: रें
लोकतंत्र, धमकखनरपेक्षता, लैंखगक समानता, श्रम का सम्मान, खनष्पक्षता और समानता और सामाखजक न्याय और िैज्ञाखनक स्िभाि के
खििार कुछ सािकभौखमक मूल्य हैं खजन्हें पाठ्यिम में जोडा जाना िाखहए। हमें पाठ्यिम संिोधन में सांप्रदाखयक घुसपैठ और खििार भरने
की भयािह प्रकिया का खिरोध करना होगा।
iv. ऐसी सीखने का प्रकिया अपनाएं जो बच्चे की खििेिनात्मक सोि और खििेिनात्मक चितन को बढ़ा:ए सं ीखने की प्रकिया बाल-कें कद्रत
होना िाखहए। 10 जानकाररय़ों को रटकर और दोहराकर सीखने के बजाय ज्ञान और महत्िपूणक खिश्लेषणत्मक क्षमताओं के खनमाकण पर जोर
होना िाखहए। खिक्षक की खिक्षा पर इस जोर के पररितकन पर ध्यान कें कद्रत करना िाखहए। कक्षा का िातािरण और यहां तक कक आदान-
प्रदान की प्रकिया भी लोकतांखत्रक होनी िाखहए।
v. बच्चे को िैज्ञाखनक स्िभाि को खिकखसत करने और खिज्ञान की खिखध को समझने और अभ्यास करने के खलए प्रोत्साखहत करना िाखहए:
सीखने की पूरी प्रकिया सीखने िाले को सिाल उठाने के खलए सक्षम करेगी। सीखने का प्रकिया सीखने िाली के अन्िेषण और पूछताछ के
कौिल को बढ़ािा देना िाखहए। पाठ्यपुस्तकें और अन्य सीखने के संसाधन खुले खसरे िाले होने िाखहए ताकक बच्चा प्रकिया के माध्यम से
सीखने में सक्षम हो सके। संिैधाखनक मानदंड़ों के अंतगकत खिक्षा के माध्यम से िैज्ञाखनक, तककसंगत और खििेिनात्मक सोि को सुखनखित
करना िाखहए।
vi. उम्र के अनुसार छात्ऱों को काम की दुखनया के बारे में खुद के अनुभि से सामना कराना िाखहए: यह मुद्दा न केिल गरीब़ों के मामले में
स्कूली खिक्षा की बाधाओं को दरू करने के खलए बखल्क जाखत आधाररत खिभाजन के भारतीय संदभक में काम के प्रखत नए मूल्य़ों को स्थाखपत
करने के खलए भी बहुत महत्िपूणक ह।ै संबंखधत दसू रा मुद्दा छात्ऱों को खिज्ञान, प्रौद्योखगकी, पाररखस्थखतकी, ऊजाक और समाज की नई और
उभरती हुई दखु नया के खलए तैयार करने के खलए स्कूल को साधन संपन्न करना ह।ै बेहतर और न्यायपूणक भारत के खलए अगली पीढ़ी को
तैयार करने के खलए खिज्ञान, प्रौद्योखगकी, पाररखस्थखतकी और समाज पर उपयुि दखृ ष्टकोण और कौिल खिकखसत करना होगा।
17. सेकें डरी खिक्षा और उच्चतर खिक्षा के बीि स्िाभाखिक संबंध स्थाखपत क:र ें ककसी भी राष्ट्र के मुख्य िैखक्षक उद्देश्य़ों में से एक खिक्षा की एक
ऐसी प्रणाली खिकखसत करना है जो उसके लोग़ों को कायक और जीिन और कौिल और प्रखतभा को खिकखसत करने की अनुमखत देगी , खजसकी
उन्हें जीिन भर आिश्यकता होगी। ऐसा करने के खलए सेकें डरी खिक्षा और उच्चतर खिक्षा के बीि मजबूत संबंध सुखनखित करना होगा।
दोऩों के बीि स्कूली छात्ऱों के फायदे के खलए खिक्षक व्यािसाखयक खिकास और छात्ऱों के आउटरीि कायकिम़ों के खलए सहयोग हो सकता है।
18. खिकें द्रीकृ त और गैर-नौकरिाही सरकारी संरिना को अपनाए: ं स्कूल़ों के िैक्षखणक प्रबंधन में स्थानीय खनकाय़ों को िाखमल करने की
संभािना को तलािा जाना िाखहए। सामाखजक भागीदारी को बढ़ािा देने और साथ ही खिखिष्ट स्थानीय मामल़ों के समाधान के खलए
िैक्षखणक प्रबंधन का खिकें द्रीकरण अखनिायक है।
19. सभी छात्ऱों के पास आधुखनक िैक्षखणक तकनीकी सुखिधाओं तक मुफ्त पहुंि होनी िाखहए: यह ज्ञान का युग है।
आधुखनक तकनीक का उभरता हुआ क्षेत्र हमें खबना त्िररत रूप से उभर रही निीनतम जानकाररय़ों तक पहुंिने के खलए पयाकप्त गुंजाइि
प्रदान करता है। इसखलए हमें खिक्षा को नए िैखिक, संिार के संदभक में रखना होगा। प्रत्येक बच्चे को अपने सीखने को सक्षम करने के खलए
सूिना संिार प्रौद्योखगकी (ICT) सखहत िैक्षखणक प्रौद्योखगकी तक पहुंि और इसके खन: िुल्क उपयोग का अखधकार होना िाखहए। खिक्षक़ों
को खििेकपूणक तरीके से प्रौद्योखगकी का उपयोग करने के खलए उखित प्रखिक्षण कदया जाना िाखहए ताकक उन्हें प्राप्तकताक िाले खसरे पर होने के
बजाय कंटेंट उत्पादक के रूप में सक्षम ककया जा सके। सभी स्कूल़ों में समान रूप से ICT अधोसंरिना स्थाखपत की जानी िाखहए। उपरोि
लक्ष्य़ों की प्राखप्त के खलए माखलकाना सॉफ्टिेयर और खििेता-उन्मुख कंटेंट के बजाय, खिक्षाखिद़ों द्वारा प्रदान की गई सामग्री (न कक बाजार
की ताकत़ों द्वारा) के साथ FOSS (मुफ्त और खुले स्रोत िाले सॉफ्टिेयर) आधाररत सॉफ्टिेयर का उपयोग होना िाखहए।
20. खिक्षक़ों की खिक्षा को पुनर्थिकखसत ककया जाना िाखहए, ताकक खिक्षक पेिेिर बन स:क ेंखिक्षक़ों की खिक्षा और खिक्षक़ों के रूपांतरण पर
प्रमुख जोर कदया जाना िाखहए। सभी स्तऱों पर खिक्षक़ों के व्यािसाखयक खिकास में उखित आिंटन और समुखित खनिेि ककया जाना
िाखहए। खनयखमत अंतराल पर व्यािसाखयक खिकास कायकिम़ों के खलए गुंजाइि होगी।
21. लोकतांखत्रक अखधकाऱों और लोकतांखत्रक खनकाय़ों को मजबूत करने की गुंजाइि होनी िाखहए: छात्ऱों को संघ बनाने की स्ितंत्रता होनी
िाखहए। छात्ऱों को खनणकय लेने िाले खनकाय़ों में प्रखतखनखधत्ि प्रदान ककया जाना िाखहए। स्कूल असेंबखलय़ों को लोकसंखत्रक तरीके से गरठत
ककया जाएगा और उनके कायों को सुखनखित ककया जाएगा। अखभभािक़ों की सखमखतय़ों को भी मजबूत ककया जाएगा।
22. मध्यान्ह भोजन की गुणित्ता सुखनखित की जानी िाखहए और कक्षा1 2 तक सभी बच्च़ों को मध्यान्ह भोजन कदया जाना िाखहए: प्रत्येक बच्चे
के खलए पयाकप्त पोषण सुखनखित करने के खलए मध्यान्ह भोजन की मात्रा और गुणित्ता को बढ़ाया जाना िाखहए। िूंकक पोषण िारीररक और
मानखसक खिकास का एक अखनिायक घटक है, इसखलए इसे गुणित्तापूणक खिक्षा के एक अखभन्न घटक के रूप में देखा जाना िाखहए। उन सभी
खबिौखलय़ों को दरू करें जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस योजना से फायदा उठा रह े ह।ैं योजना की खनगरानी और पयकिेक्षण की खजम्मेदारी
SMC को दी जानी िाखहए। स्थानीय स्ििासन की भागीदारी सुखनखित की जानी िाखहए। मध्यान्ह भोजन के प्रािधान में काम करने िाले
लोग़ों को पयाकप्त रूप से िेतन खमलना िाखहए।
23. खििेष आिश्यकताओं िाले बच्च़ों की समुखित देखभाल और खिक्षा सुखनखित क:र ेंखनयखमत स्कूल़ों में खििेष जरूरत़ों िाले बच्च़ों को खिक्षा
प्रदान करने के खलए सुखिधाओं और कमकिाररय़ों की व्यिस्था खनर्थमत की जानी िाखहए। िैक्षखणक प्रिासक़ों और खिक्षक़ों को CWSN के
खिषय में संिेदनिील बनाना िाखहए।
24. अखिक्षा को खमटाने के खलए साक्षरता कायकिम़ों के सामाखजक िलन को िापस लाए: दं िे में अभी भी मौजूद अखिक्षा का प्राथखमकता के साथ
समाधान ककया जाना िाखहए। लगभग 30 करोड की भारतीय जनसंख्या अभी भी अखिक्षा के अंधेरे िरण में है। संपूणक साक्षरता अखभयान
के अनुभि़ों के आधार अखिक्षा खमटाने के कायकिम िृहत सामाखजक भागीदारी के साथ तैयार ककए जाने िाखहए। सामाखजक क्षमताओं का
उपयोग ककया जाएगा। और आजीिन खिक्षा के साथ नागररक खिक्षा का एक नया तंत्र खिकखसत ककया जाना िाखहए। राज्य संसाधन कें द्र
(SRC) जैसे संस्थागत तंत्र को कफर से स्थाखपत ककया जाना िाखहए और क्षेत्र खििेष के मुद्द़ों को हल करने के खलए मजबूत करना िाखहए।
साक्षरता और नागररक खिक्षा कायकिम को आजीखिका कायकिम़ों से जोडा जाएगा।
25. एक व्यापक सतत और आजीिन खिक्षा नीखत तैयार कर: ें ककसी भी साक्षरता कायकिम की खनरंतरता में फॉलो-अप कायकिम भी होने िाखहए।
नागररक खिक्षा कायकिम के साथ सतत और आजीिन खिक्षा का संयोजन करने की आिश्यकता है। इस संदभक में राज्य़ों के परामिक से एक
खिस्तृत नीखत बनाई जानी है। खनरंतरता सुखनखित करने के खलए जन संस्थान खिकखसत करने की गुंजाइि होना िाखहए,
26. खिक्षा के संिालन में समुदाय, स्थानीय स्ििासन की भागीदारी सुखनखित कर: ें प्रभािी कियान्ियन और सामाखजक स्िाखमत्ि के खलए
समुदाय की भागीदारी सिाकखधक महत्िपूणक है। यह खसफक खिकें द्रीकरण के माध्यम से ही संभि है, इस प्रकार राज्य को खिक्षा के संबंध में
कायकिम तैयार करने, योजना और कियान्ियन की खजम्मेदारी स्थानीय स्ि-सरकाऱों को सौंपना है।
27. सभी स्तऱों पर कायकिम़ों के उखित कियान्ियन को सुखनखित करने के खलए सामाखजक अंकेक्षण के खलए एक तंत्र खिकखसत ककया जाना
िाखहए: यह सुखनखित करने के खलए कक उनके खलए जिाबदेही सिाकखधक अखनिायक है,
प्रणालीगत जिाबदेही से अलग सामाखजक जिाबदेही के खलए तंत्र खिकखसत ककया जाएगा। सामाखजक जिाबदेही के खलए समाज की यह
आकलन करने में एक भूखमका होनी िाखहए कक क्या व्यिस्था उद्देश्य़ों और समय रेखा के अनुसार पररणाम दे रही है, जैसा पररकखल्पत
ककया गया था।
मांगें एक नजर में :
1. खिक्षा की नीखतय़ों का गठन संिैधाखनक दाखयत्ि पर आधाररत होना िाखहए
2. खिक्षा प्रणाली में कोई भी सुधार लोकतंत्र, समानता और धमकखनरपेक्षता के संिैधाखनक खसद्धांत को कायम रखना िाखहए। सामाखजक न्याय और
खनष्पक्षता गैर-परािम्य हैं
3. कानूनी अखधकार के रूप में उच्च माध्यखमक खिक्षा के साथ ECEC, पूिकस्कूली और माध्यखमक को िाखमल करके, RTE अखधखनयम के दायरे को
अंतराकष्ट्रीय रूप से मान्य बिपन की पररभाषा के अनुसार, जन्म से 18 साल़ों तक बढ़ाएं
4. सच्चे अथक और भािना में मानक़ों और मानदंड़ों के साथ RTE अखधखनम के संपूणक अनुपालन सुखनखित करें और इसके कियान्ियन के खलए सरकार
को जिाबदेह बनाएं.
5. समुदाय के सीमांत िगों (SC, ST, गांि की लडककय़ों, अल्पसंख्यक समूह़ों, प्रिाखसय़ों आकद) के खलए एक खमिन मोड में खिक्षा नीखत की कठोर
समीक्षा और सुधार ककए जाने की आिश्यकता है
6. सभी स्कूल़ों और ECCE कें द्ऱों में सकुिल और सुरखक्षत स्कूल पयाकिरण के सामाखजक समािेि और प्रािधान को सुखनखित करने के खलए कडे और
बारीकी से खनगरानी के कदम उठाएं और आकदिासी, दखलत, अल्पसंख्यक बच्च़ों, खििेष रूप से लडककय़ों और खििेष जरूरत़ों िाले बच्च़ों और अन्य
कमजोर समूह़ों द्वारा खिक्षा के खलए सामना की जा रही खिखिष्ट बाधाओं का समाधान करें
7. खिक्षा को एक पररितकनकारी िखि बनना िाखहए, मखहलाओं का आत्मखििास खनर्थमत करना िाखहए, और समाज में उनकी खस्थखत में सुधार करना
और असमानताओं को िुनौती देना िाखहए
8. 18 साल की उम्र तक बाल श्रम का पूरी तरह उन्मूलन सुखनखित करें और बाल श्रम (खनषेध और खिखनयमन) संिोधन अखधखनयम 2016 की धारा
3 को हटाएं जो कक ‘पाररिाररक उद्यम’ में बाल श्रम को िैध करता है
9. ‘सामान्य स्कूल प्रणाली’ सुखनखित करें और बहु-स्तरीय खिक्षा प्रणाली से बिें जो खिक्षा में असमानता का कारण बनती है
10. सािकभौखमक रूप से सहमखत प्राप्त खिक्षा खित्तपोषण बेंिमाकक और कोठारी आयोग की खसफाररि़ों के साथ ही राष्ट्रीय नीखतय़ों की पररकल्पना के
अनुसार GDP का 6% उपलब्ध कराएं
11. RTE की खनरस्त धारा 16 को बहाल करना- खिक्षा के खलए बच्च़ों के मौखलक अखधकार की रीढ़- RTE का कियान्ियन और गुणित्तापूणक सीखने
के माहौल का प्रािधान सुखनखित करें, बच्च़ों को रोके रखने और स्कूल से खनकालने के खलए प्रणालीगत ‘असफलता’ के बोझ को न रखें
12. सरकारी स्कूल़ों को गैर व्यिहाररक मानते हुए उन्हें बंद करने का काम खत्म करें ; उन्हें पुनजीखित करें खजन्हें RTE 2009 के अनुमोदन के बाद
बंद कर कदया गया है या कफर ककसी अन्य स्कूल के साथ खिलय कर कदया गया है
13. प्रखत कक्षा िगों में खनयखमत खिक्षक भती करें
14. खिक्षक़ों के व्यािसाखयक खिकास के खलए कायकिम सुखनखित करें
15. संखिदा खिक्षक़ों की खनयुखि करके खिक्षक़ों का िोषण बंद करें
16. संिैधाखनक लक्ष्य़ों के अनुरूप राष्ट्रीय पाठ्यिम की रूपरेखा तैयार करें और संखिधान में खनखहत मूल्य़ों को खिकखसत करने में बच्चे की मदद करें।
और राष्ट्र की खिखिधता को कायम रखते हुए पाठ्यिम का खिकास करें- मातृभाषा को खिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग करके , यह सुखनखित करके
कक देि भर में सभी बच्च़ों के खलए कोई एक भाषा अखनिायक नहीं की जानी िाखहए, खिक्षा में सभी सांप्रदाखयक एजेंडे और इखतहास के तककहीन
दखृ ष्टकोण जो कक सबूत़ों द्वारा समर्थथत नहीं ह ैं उन का खिरोध करके , ऐसी सीखने की प्रकियाओं को अपनाकर जो बच्चे की खििेिनात्मक सोि और
खििेिनात्मक चितन बढ़ािा दे और और िैज्ञाखनक स्िभाि को समझने और खिज्ञान की पद्धखत को समझने के खलए बच्चे को बढ़ािा देकर। और उम्र के
अनुसार छात्ऱों को काम की दखु नया के बारे में खुद के अनुभि से सामना कराना िाखहए
17. सेकें डरी खिक्षा और उच्चतर खिक्षा के बीि स्िाभाखिक संबंध स्थाखपत करें
18. खिकें द्रीकृत और गैर-नौकरिाही सरकारी संरिना को अपनाएं
19. सभी छात्ऱों के पास आधुखनक िैक्षखणक तकनीकी सुखिधाओं तक मुफ्त पहुंि होनी िाखहए
20. खिक्षक़ों की खिक्षा को पुनर्थिकखसत ककया जाना िाखहए, ताकक खिक्षक पेिेिर बन सकें
21.लोकतांखत्रक अखधकाऱों और लोकतांखत्रक खनकाय़ों को मजबूत करने की गुंजाइि होनी िाखह ए
22. मध्यान्ह भोजन की गुणित्ता सुखनखित की जानी िाखहए और कक्षा 12 तक सभी बच्च़ों को मध्यान्ह भोजन कदया जाना िाखहए
23. खििेष आिश्यकताओं िाले बच्च़ों की समुखित देखभाल और खिक्षा सुखनखित करें
24. अखिक्षा को खमटाने के खलए साक्षरता कायकिम़ों के सामाखजक िलन को िापस लाएं
25. एक व्यापक सतत और आजीिन खिक्षा नीखत तैयार करें
26. खिक्षा के संिालन में समुदाय, स्थानीय स्ििासन की भागीदारी सुखनखित करें
27. सभी स्तऱों पर कायकिम़ों के उखित कियान्ियन को सुखनखित करने के खलए सामाखजक अंकेक्षण के खलए एक तंत्र खिकखसत ककया जाना िाखहए
भारत ज्ञान विज्ञान समिति ( BGVS)
स्कूल शिक्षा और साक्षरता पर जन घोषणा पत्र
------------------------------------------ -
1. 2011 के जनगणना आंकड़ों के मुताखबक 27% लोग अशिक्षित हैं, जो कि हमारी जनसंख्या के 30 करोड से अधिक को शामिल करता है।
महिलाओं में साक्षरता की दर मात्र 65% है जिसका अर्थ है कि 35% महिलाएं अभी भी अशिक्षित हैं। दलित़ों, आदिवासियों , तटीय इलाक़ों के मछुआऱों और अन्य पिछड़ा वर्ग के समुदाय से संबंधित लोग़ों में साक्षरता की दर काफी कम है। हम वर्तमान स्थिति को कैसे सही ठहरा सकते हैं, खासतौर पर तब जबकि आजादी के 71 साल़ों के बाद भी हमारे देश में 30 करोड से अधिक अशिक्षित भाई-बहन मौजूद हैं।
2. UNESCO (यूनेस्को) द्वारा दुनिया भर में जारी की गई द एजुकेिन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2013-2014 (GMR) में भी
स्वीकार किया गया है कि अभी तक भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा 287 मिलयन (28 करोड 70 लाख) अशिक्षित लोग़ों की जनसंख्या है, जो कि वैश्विक योग का 37 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से इस तथ्य को रेखांकित करती है कि सर्वाधिक हासिये पर रहने वाले समूह़ों के लोग़ों को दशकों से शिक्षा के अवसऱों से
वंचित रखा जाना जारी है। रिपोर्ट आगे कहती है कि धनी युवा महिलाओं ने पहले ही
वैश्विक साक्षरता का स्तर हासिल कर लिया है लेकिन गरीब महिलाओं के लिए ये सन 2080 के आसपास संभावित हो पाने का अनुमान है, यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत के भीतर यह विशाल असमानता सर्वाधिक जरूरतमंद लोग़ों की ओर पर्याप्त रूप से समर्थन दे पाने में विफलता की ओर इशारा कर रही है।
3. भारतीय शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बडी शिक्षा प्रणालिय़ों में से एक है, जिसमें 2014-15 के लिए UDISE के आंकड़ों के मुताबिक
कक्षा 1 से 12 तक लगभग 260 मिलयन (26 करोड) बच्चे पढ़ रहे हैं, यह 36 राज्य़ों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित है, 683 जिल़ों में 15 लाख से ज्यादा स्कूल शामिल हैं; लगभग 75% प्राथमिक, 43% सेकेंडरी और 40% हायर सेकेंडरी स्कूल़ों का स्वामित्व और प्रबंधन सरकार करती है, बाकी के निजी क्षेत्र में हैं, जिनका स्वामित्व और प्रबंधन निजी एजेंसियां करती हैं। 2014-15 के U-DISE आंकड़ों के मुताबिक स्कूल़ों में दाखला लेने वाले 260 मिलियन बच्च़ों में, प्राथमिक शिक्षा 192 मिलियन (19 करोड 20 लाख) बच्च़ों को शामिल करती
है, सेकेंडरी शिक्षा में 38 (3 करोड 80 लाख) मिलियन बच्चे हैं और हायर सेकेंडरी शिक्षा में 24 मिलियन (2 करोड 40 लाख) बच्चे शामिल हैं। इन आंकड़ों में उच्चतर शिक्षा में दाखला लेने वाले बच्चे शामिल नहीं हैं जिसमें 30 मिलियन (3 करोड) से ज्यादा छात्र शामिल होते हैं।
जन शिक्षा ही एकमात्र प्रणाली है जिसका देश के अधिकांश परिवाऱों से सीधा संपर्क है।
4. वास्तविक संख्या पर कम विश्वसनीय आंकड़ों के साथ आज भी स्कूली आयु वर्ग के लाख़ों बच्चे अभी भी स्कूल से बाहर हैं। कई अध्ययऩों से स्थापित हुआ है कि कक्षाओं, शौचालय, और पीने का पानी जैसी मूलभूत अधोसंरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता भी कक्षाओं में उपस्थिति , टिके रहने और सीखने की गुणित्ता पर असर डालती है। RTE अधिनियम किसी स्कूल के लिए न्यूनतम भौतिक और शैक्षणिक अधोसंरचना निर्धारित करता है | दुर्भाग्य से, अखधकांश सरकारी स्कूल और बडी संख्या में निजी स्कूल RTE अधिनियम द्वारा प्रस्तावित मानदंड़ों को, इनके संपूर्ण अनुपालन की तारीख 31 मार्च 2015 के गुजर जाने के बावजूद पूरा नहीं करते हैं। प्राथमिक स्तर पर कक्षा 1 में दाखला लेने वाले 10 बच्च़ों में से सिर्फ 6 बच्चे कक्षा 8 तक पहुंचते हैं- यानी) 40% बच्चे कक्षा 8 से पहले ही औपचारिक प्रणाली को छोड देते हैं और वे स्कूल छोडने वाले बच्च़ों में सबसे अधिक हैं, 47% बच्चे कक्षा 10 में पहुंचने से पहले तक बाहर निकल जाते हैं। ये अधिकारिक आंकडे हैं- वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा चिताजनक है। SC/ST विद्यार्थियों और छात्राओं के पढ़ाई छोडने की दर ज्यादा है। भौतिक अधोसंरचना, पेयजल की सुविधाएं और बालिकाओं के लिए शौचालय की सुखिधाएं संतुष्टजनक स्तर से काफी कम हैं। देश में प्राथमिक स्कूल़ों में 80 लाख से अधिक शिक्षक हैं, और सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूल़ों में 20 लाख से अधिक हैं। लगभग 59% प्राथमिक शिक्षक सरकारी स्कूल़ों में हैं; इसके बावजूद देश के 8% प्राथमिक स्कूल एकल शिक्षक स्कूल हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि प्राथमिक स्कूल़ों में
9 लाख से अधिक शिक्षक़ों की कमी है; लगभग 14% सरकारी सेकेंडरी स्कूल़ों में प्रस्तावित न्यूनतम 6 शिक्षक नहीं हैं। शिक्षक़ों की रिक्तियां सबसे ज्यादा आदिवासी इलाक़ों में हैं, सुदूरवर्ती गांवों में जहां अपर्याप्त
सुविधाओं के कारण शिक्षक तैनाती से हिचकिचाते हैं
5. संपूणक रूप से RTE का क्रियान्वयन धीमा रहा है। सरकार द्वारा गंभीरता से लागू की गई एकमात्र योजना गैर- सहायता प्राप्त स्कूल़ों की स्थापना की अनुमति देना रहा है और कुछ राज्य़ों ने अपने खुद के पब्लिक स्कूलों को PPP मोड के तहत निजी एजेंसिय़ों को सौंपने का प्रयास भी किया है। प्राथमिक और सेकेंडरी शैक्षणिक स्तर के बीच में बडी संख्या में छात्रों का पढ़ाई छोडना एक संकेत है कि RTE
अधिनियम और NCF 2005 में प्राथमिक शिक्षा के लिए परभाषित अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा के मापदंड़ों को पूरा नहीं किया जा रहा है।
यह भारत के युवा नागररक़ों के कानूनी अधिकार के उल्लंघन का एक उदाहरण है।
6. 2017 में भारत ने अपने GDP (सकल घरेलू उत्पाद) का मात्र 2.7% शिक्षा पर खरच किया। संपूणक रूप से यह स्कूली शिक्षा के प्रति सरकार की न्यूनतम प्रतिबद्धता को प्रकट करता है। 1968 और 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा योजनाएं, और जैसा कि 1992 में संशोधित किया गया, सभी में शिक्षा पर राष्ट्रीय व्यय के लिए मानक के रूप में GDP के 6% की सिफारिस की गई थी। हालांकक, इन परामर्शों के बावजूद, शिक्षा पर खर्च लगातार इस स्तर के नीचे बना हुआ है। 1951-52 में 0.64% से, 1990-91 में यह अनुपात बढ़कर 3.84% हुआ है। तुलनात्मक
रूप से OECD देशों में खर्च का यही स्तर 5.3% के औसत पर है। जबकि क्यूबा अपनी GDP का 18% शिक्षा के लिए देता है, मलेशिया, कीनिया और यहां तक कि मलावी भी 6% के बेंच मार्क को पार करने में समर्थ हुए हैं | दुनिया के सभी देशों के लिए GDP के प्रतिशत के रूप में सरकारी खर्च का औसत भार 4.9% है, जो कि भारत के खर्च से काफी ऊपर है। इस तुलना से साफ तौर पर भारत द्वारा की गई
प्रतिबद्धता पर अमल करने में जानबूझकर की गई उपेक्षा का पता मिलता है। आम चुनावों के ठीक पहले 1 फरवरी 2019 को पेश किए गए अंतरिम केंद्रीय बजट में भी शिक्षा के प्रति कें द्र सरकार लापरवाही स्पष्ट है|
7. यह साफ संकेत है कि सरकार नव उदारनीतिय़ों के नुस्खे को कायम रखते हुए, सभी बच्च़ों को शिक्षा देने के अपने कर्तव्य से पीछे हट रही है। और साथ ही नवउदार आकाओं के आदेशानुसार ‘गुणित्तापूणक शिक्षा’ की भ्रामक धारणा के तहत, सरकार अपने स्ियं के स्कूल़ों और शिक्षक़ों को कम आंककर, सार्वजनिक संपत्तियों को निजी उद्यमिय़ों और कॉरपोरेट ताकत़ों को सौंपने के लिए नीतियां बना रही है।
इस संदर्भ में, हम भारत के लोग मांग करते हैं -
1. शैक्षणिक नीतियों का गठन संवैधानिक दायित्व पर आधारित होना चाहिए : भारत एक धर्म निरपेक्ष और लोकतान्त्रिक देश है और शिक्षा का मूल दायित्त्व नागरिक़ों का पोषण करना है, संविधान के प्रति प्रतिबद्धता और संवैधानिक मूल्य़ों मे विश्वास के साथ तैयार की जाने वाली कोई भी शिक्षा नीति संवैधानिक दृष्टि के अनुसार विकसित की जानी चाहिए जैसा कि प्रस्तावना में कहा गया है- समाजवाद ,
धर्मनिरपेक्षता, समानता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र ये पाठ्यिक्रम, शिक्षािशास्त्र और शैक्षणिक प्रशासन के निर्माण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए ।
2. शिक्षा प्रणाली में कोई भी सुधार लोकतंत्र, समानता और धर्म निरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत़ों को कायम रखना चाहिए । सामाजिक न्याय और समानता गैर पराक्रम्य हैं : शैक्षणिक सुधार के लिए एक दृष्टि की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार ह़ोंगी:
i. शिक्षा एक सहायक प्रकिया नहीं है, बल्कि न्यायसंगत और सतत सामाजिक विकास के लिए एक परिवर्तनकारी प्रकिया है। शिक्षा को धर्मनिरपेक्षता पर आधाररत संवैधानिक मूल्य़ों को बनाए रखते हुए राष्ट्र निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए , धर्म , भाषा और जातीयता के बहुलवाद को बढ़ावा देना चाहिए जो कि भारतीय लोकतंत्र के हिस्से का निर्माण करता है और वैज्ञानिक स्वभाव को
अंतर्विष्ट करता है।
ii. शि क्षा महज एक व्यखि-कें कद्रत कररयर-उन्मुख उद्यम नहीं है। यह एक रिनात्मक सामाखजक प्रयास होना िाखहए। खिक्षा को
छात्ऱों की ज्ञान के खनमाकण और खिस्तार की क्षमताओं, खििेिनात्मक सोि प्रकटीकरण की क्षमता, और खिज्ञान की पद्धखत पर
आधाररत खिश्लेषणात्मक और रिनात्मक कौिल को खिकखसत करना िाखहए।
iii. खिक्षण-सीखने की प्रकिया को अपने आपमें मजदार एक खििेिनात्म और रिनात्मक गखतखिखध के रूप में खडजाइन ककया जाना
िाखहए, खजसमें खिक्षक और छात्र एक साथ भाग लें। छात्ऱों के बीि क्षमताओं के खिकास को गखतखिखध उन्मुख अन्िेषण, पठन,
लेखन और प्रस्तुखतकरण, समूह ििाक, िाद-खििाद, प्रायोखगक गखतखिखधय़ों और क्षेत्रीय पररयोजनाओं इत्याकद के माध्यम से सुगम
बनाना िाखहए।
iv. खिक्षा एक सांस्कृखतक प्रकिया होनी िाखहए। छात्र को एक समझ खिकखसत करनी िाखहए जो उन्हें व्यापक सामाखजक संदभक में
उनकी खुद की रुखिय़ों और क्षमताओं का पता लगाने में मदद करे। यह उसे अपने कायक उपकरण के रूप में करने के बजाय
रिनात्मक रूप से करने में सक्षम बनाती है, पररितकनकारी कारकिाई के खलए सामूखहक रूप से काम करना।
v. इससे एक कैम्पस कल्िर (पररसर संस्कृखत) का खिकास भी होता है जो कक, लोकतांखत्रक, धमकखनरपेक्ष और समानाखधकारिादी है,
जहां सामाखजक न्याय का आिासन होता है और ककसी के साथ भी जाखत, िगक, चलग, भाषा, धमक या नस्ल के आधार पर भेदभाि
नहीं होता। िहां पर छात्ऱों की क्षमताओं के सिाांगीण खिकास के खलए स्थान होगा जो कक जहां तक संभि हो उनकी व्यखिगत
रुखिय़ों और प्राथखमकताओं का भी ध्यान रखे।
vi. इस तरह की संरिना में सभी िैक्षखणक मामल़ों में प्राथखमक खनणकय िैक्षखणक समुदाय में खनखहत होगा खजसमें खिक्षक और छात्र
िाखमल ह़ोंगे। हालांकक, उन्हें सामाखजक रूप से समुदाय के प्रखत खजम्मेदार होना होगा।
3. RTE अखधखनयम के दायरे को जन्म से 18 िषक तक, अंतराकष्ट्रीय मान्यता प्राप्त बिपन की पररभाषा के अनुसार, ECCE, प्री स्कूल और
सेकें डरी के साथ हायर सेकें डरी खिक्षा को कानूनी अखधकाऱों के रूप में िाखमल करक,े खिस्ताररत ककया जाए: सभी नागररक़ों खासतौर पर
18 साल से कम के बच्च़ों को खिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की खजम्मेदारी होना िाखहए, िह भी सामाखजक न्याय, खनष्पक्षता, समानता
और गुणित्ता सुखनखित करके समािेिी खिक्षा। खिक्षा को पडोसी स्कूल़ों के साथ, एक सामान्य स्कूल प्रणाली के माध्यम से, धमकखनरपेक्ष और
लोकतांखत्रक खसद्धांत़ों को बनाए रखना िाखहए। सभी सामाखजक-आर्थथक स्तर के बच्च़ों को एक ही स्कूल में एक साथ, बगैर ककसी भेदभाि
के पढ़ना िाखहए। आंगनिाडी प्रणाली और कें द्ऱों को मजबूत करके 3-6 साल की उम्र के सभी बच्च़ों को गुणित्तापूणक िुरुआती बाल देखभाल
और खिक्षा प्रदान की जानी िाखहए। और जहां पर भी आिश्यक हो I 3 साल से छोटे बच्च़ों के खलए आिश्यक देखभाल कें द्र के रूप में ऐसे
िेि (पालनाघर) भी होना िाखहए, जहां पर कामकाजी माता-खपता अपनी आजीखिका के भाग के रूप में काम पर जाते समय अपने बच्चे को
आत्मखििास के साथ रख सकें ।
4. सच्चे िब्द़ों और भािनाओ में मानदंड़ों और मानक़ों के साथR TE अखधखनयम का पूणक अनुपालन और कियान्ियन सुखनखित करें और इसके
कियान्ियन के खलए सरकार को जिाबदेह बनाए: ं NCF 2005 (u/s 7 में अखधसूखित) में पररभाखषत गुणित्ता खिक्षा के मानदडं ़ों के साथ
RTE अखधखनयम की धारा 8 में अच्छी गुणित्ता की खिक्षा के खलए जनादेि को कें द्र और राज्य दोऩों सरकाऱों द्वारा गखतिील रूप से
कियाखन्ित ककया जाना िाखहए और इसकी लगातार और व्यापक खनगरानी होनी िाखहए। RTE की भािना को प्राप्त करने के खलए
गुणित्तापूणक खिक्षा के छह घटक़ों (पाठ्यिम और खसलेबस, पाठ्यपुस्तकें और TLMs, खिक्षक़ों और अखधकाररय़ों का व्यािसाखयक खिकास,
मूल्यांकन, प्रिासखनक सहयोग और सामुदाखयक सहभाखगता) को खिखिष्ट जिाबदेही के साथ, गंभीरतापूिकक कियाखन्ित ककया जाना
िाखहए। प्रणाली को समुदाय की रिनात्मक भागीदारी के साथ बच्चे का िारीररक, सामाखजक और भािनात्मक खिकास और सुरक्षा
सुखनखित करना िाखहए।
5. समुदाय के सीमांत िगों (SC,ST,गांि की लडककय़ों, अल्पसंख्यक समूह़ों, खिस्थाखपत़ों इत्याकद)के खलए एक खिक्षा नीखत की कठोर समीक्षा
और सुधार एक खमिन मोड में ककए जाने की आिश्यकता ह: ै इन समूह़ों के बारे में सभी आंकडे मामल़ों की एक दखु द और खेदजनक खस्थखत
प्रकट करते हैं। लाख़ों बच्चे अपने खिक्षा के मानि अखधकार से िंखित कर कदए जाते हैं क्य़ोंकक उनके माता-खपता उन्हें स्कूल में रखने में सक्षम
नहीं हैं। यह प्रणाली इस समूह के खलए समानतापूणक गुणित्ता िाली खिक्षा की मांग को प्रिासखनक और िैक्षखणक दोऩों ही तरह से घोर
उपेक्षा करती है। पाठ्यिम, पाठ्यपुस्तकें और सभी संबंखधत संसाधन इन सीमांत िगक के लोग़ों के संसाधऩों और खनखहत क्षमता और
आिश्यकताओं की कभी पूर्थत नहीं करते हैं। इससे इन सीमांत िगक के लोग़ों के खलए खिक्षा नीखत की कठोर समीक्षा और खनमाकण की
आिश्यकता पैदा होती है।
6. सभी खिद्यालय़ों और ECCE कें द्ऱों में सामाखजक समािेिन और सुरखक्षत और सकुिल स्कूल िातािरण के प्रािधान को सुखनखित करने के
खलए कडे और बारीक खनगरानी के कदम उठाएं और आकदिासी, दखलत, अल्पसंख्यक बच्च़ों, खििेष रूप से लडककय़ों और खििेष जरूरत़ों
िाले बच्च़ों और अन्य कमजोर समूह़ों द्वारा खिक्षा के खलए सामना की जाने िाली बाधाओं का समाधान क: रहें में उस तरह की खिक्षा प्रणाली
के कियान्ियन को सुखनखित करना है जो कक सामाखजक न्याय, खनष्पक्षता, समानता और गुणित्ता की उपलखब्धय़ों को प्रदान और खितररत
करे।
7. खिक्षा को एक पररितकनकारी िखि बनना िाखहए, मखहलाओं का आत्मखििास खनर्थमत करना िाखहए, और समाज में उनकी खस्थखत में
सुधार करना और असमानताओं को िुनौती देना िाखहए: UNESCO का खिक्षा 2030 का एजेंडा मान्य करता है कक लैंखगक समानता के
खलए के खलए एक ऐसे दखृ ष्टकोण की आिश्यकता ह ै जो ‘ सुखनखित करता ह ै कक बालक और बाखलकाओं, मखहला और पुरुष न केिल संपूणक
खिक्षा िि तक पहुंि प्राप्त करें, बखल्क िे खिक्षा में और उसके माध्यम से समान रूप से सिि ह़ों।‘ गरीबी, भौगोखलक अलगाि, अल्पसंख्यक
खस्थखत, खिकलांगता, बाल खििाह और गभाकिस्था, चलग आधाररत-चहसा, और मखहलाओं की खस्थखत और भूखमका के बारे में पारंपररक सोि,
ऐसी कई बाधाओं में से एक हैं जो कक खिक्षा में मखहलाओं और बाखलकाओं की भागीदारी, पूरी करने और लाभ लेने के अखधकार के संपूणक
उपयोग के रास्ते में खडी हैं।
8. 18 साल की उम्र तक बाल श्रम का पूरी तरह उन्मूलन सुखनखित करें और बाल श्रम (खनषेध और खिखनयमन) संिोधन अखधखनयम 2016 की
धारा 3 को हटाएं जो कक ‘पाररिाररक उद्यम’ में बाल श्रम को िैध करता ह:ै ककसी भी बच्चे को ‘पाररिाररक उद्याम’ सखहत ककसी भी
स्थापना में काम करने की अनुमखत नहीं दी जाएगी। कें द्रीय कानून, बाल श्रम (खनषेध और खिखनयमन) अखधखनयम, 2016 बच्चे के अखधकाऱों
का एक उल्लंघन है और इसे एक बार में समाप्त कर कदया जाना िाखहए। यह गरीब़ों के बच्च़ों के खलए एक अपूणीय अन्याय प्रस्तुत करेगा।
9. ‘सामान्य स्कूल प्रणाली’ सुखनखित करें और बहु-स्तरीय खिक्षा प्रणाली से बिें जो खिक्षा में असमानता का कारण बनती :ह प्रै त्येक राज्य में
स्कूली खिक्षा के खलए एक ही बोडक होना िाखहए। और सभी स्कूल़ों को उस राज्य बोडक से संबद्ध होना िाखहए। ितकमान CBSE स्कूल़ों या
ितकमान में अन्य बोडों से संबद्ध स्कूल़ों को एक खनधाकररत समय सीमा के भीतर संबंखधत राज्य बोडों से संबद्ध होना िाखहए (जैसा कक
यिपाल कमेटी की ररपोटक ‘खबना बोझ के खिक्षा’ में सलाह दी गई है)। उसके बाद राज्य बोडक की संबद्धता के बगैर स्कूल़ों को ककसी राज्य में
संिालन की अनुमखत नहीं होगी। कें द्र सरकार के स्कूल़ों को कें द्र सरकार के कमकिाररय़ों या राज्य के बाहर स्थानांतरण िाली अन्य नौकरी
िाले कमकिाररय़ों के बच्च़ों के दाखखले की अनुमखत होना िाखहए। लाभ कमाने के उद्देश्य से संिाखलत होने िाले सभी स्कूल़ों को प्रखतबंखधत
ककया जाना िाखहए।
10. सािकभौखमक रूप से सहमखत प्राप्त खिक्षा खित्तपोषण बेंिमाकक और कोठारी आयोग की खसफाररि़ों के साथ ही राष्ट्रीय नीखतय़ों की
पररकल्पना के अनुसार GDP का 6% उपलब्ध कराए:ं भारतीय खिक्षा में अक्षम्य सीमा तक संसाधऩों की कमी रखी गई ह।ै सरकार को एक
सतत बढ़ती, खिस्ताररत होती, उखद्वकासी, समािेिी प्रणाली की सभी आिश्यकताओं के खलए, खिक्षा के खलए GDP का 6% सुखनखित
करना िाखहए खजसमें को भी बच्चा छूट न जाए। हर स्तर पर खिक्षा के संसाधन उपलब्ध कराने की खजम्मेदारी सरकार की होनी िाखहए।
नीखतय़ों और रणनीखतयां लागू करने और आिश्यक खित्तीय प्रािधान करने सखहत खिक्षा उपलब्ध कराने की खजम्मेदारी सरकार को उठानी
होगी। खिक्षा का खनजी प्रािधान खसफक सरकारी प्रािधान के अखतररि रूप में होना िाखहए न कक उसके एक खिकल्प के रूप में। गैर-
लाभकारी धमक खनरपेक्ष परोपकारी संस्थाओं के खनजी प्रािधाऩों पर, उखित मानक़ों और मानदंड़ों के माध्यम से,खििार ककए जाने की
आिश्यकता है। खिक्षा कोई िस्तु नहीं है। यह ज्ञान हाखसल करने की सुखिधा है, खजसका उपयोग व्यखि और समाज के फायदे के खलए ककया
जाना िाखहए। इसखलए ककसी को खिक्षा में व्यापार करने और लाभ कमाने की अनुमखत नहीं दी जानी िाखहए।
11. RTE की खनरस्त धारा 16 को बहाल करना- खिक्षा के खलए बच्च़ों के मौखलक अखधकार की रीढ़R- TE का कियान्ियन और गुणित्तापूणक
सीखने के माहौल का प्रािधान सुखनखित करें , बच्च़ों को रोके रखने और स्कूल से खनकालने के खलए प्रणालीगत‘अ सफलता’ के बोझ को न
रखें: यह एक आपखत्तजनक खस्थखत है कक खिक्षा की गुणित्ता में सुधार केिल बच्च़ों को खिक्षा से खनकालने से ही संभि है। भारतीय संसद ने
RTE की धारा 16 में संिोधन ककया और एक ऐसी नीखत िुरू की जो प्रणाली/स्कूल को परीक्षा आयोखजत करके ककसी भी कक्षा में रोके
रखने में सक्षम करती है। RTE में (1-8 कक्षा में 6-14 साल के बच्च़ों के खलए) दो अलग-अलग धाराएं हैं, खजनका नाम है धारा 16- कोई भी
बच्चा “प्राथखमक खिक्षा पूरी करने से पहले (ककसी कक्षा में) रोका नहीं जाएगा या स्कूल से बाहर नहीं ककया जाएगा ’; और 30(1)-“ प्राथखमक
खिक्षा पूरी करने से पहले ककसी भी बच्चे को कोई भी बोडक परीक्षा उत्तीणक करने की आिश्यकता नहीं होगी “।
सि कहा जाए तो RTE स्कूल़ों में िार्थषक परीक्षाओं के बारे में कुछ भी नहीं कहता है खजसके बारे में एक खमथक व्यापक रूप से प्रिाररत
ककया जाता है, कक यह परीक्षा कक अनुमखत नहीं देता इसखलए इसमें संिोधन की आिश्यकता है। RTE इस प्रकार एक स्कूल परीक्षा और
एक कें द्रीयकृत परीक्षा के बीि अंतर करता है- प्रथम को सीखने के संदभक के खनकट होने की आिश्यकता है जो कक बच्चे की संस्कृखत, भाषा
और माहौल में खनखहत हो। दसू री तरफ बोडक परीक्षा, एक दरू ी पर स्थाखपत कर दी गई ह,ै उन लोग़ों के द्वारा जो कक बच्चे के सामाखजक संदभक
से बहुत दरू हो सकते ह ैं और यह भी नहीं जानते कक स्कूल में क्या खिक्षण-सीखना हो रहा ह।ै इसके अलािा, बोडक परीक्षाएं आमतौर पर
प्रखतस्पधी होती हैं, और इसखलए उच्च प्रदिकनकारी छात्ऱों को भी अखधक तनाि की ओर अग्रसर करती हैं। धारा 16 के खलए आखधकाररक
तकक: 2009 में RTE के साथ आखधकाररक मंत्रालय नोट में धारा 16 के खलए इस प्रकार तकक कदया गया है कक : “रोके नहीं रखने” का
प्रािधान इसखलए बनाया गया है क्य़ोंकक अक्सर परीक्षाओं का इस्तेमाल खराब अंक लाने िाले छात्ऱों को बाहर करने के खलए ककया जाता
है। एक बार ‘अनुत्तीणक’ (फेल) घोखषत ककए जाने पर, बच्चे या तो कक्षा का दोहराि करते हैं या पूरी तरह से स्कूल छोड देते हैं। ककसी बच्चे को
कक्षा दोहराने के खलए मजबूर करना मनोबल खगराने िाला और हतोत्साखहत करने िाला है। कक्षा को दोहराने से ककसी बच्चे को कफर से एक
साल से खलए उसी पाठ्यिम से जूझने के खलए कोई खििेष संसाधन नहीं खमलता है”। यह दािा ककया गया कक “हर बच्चे में सीखने की समान
संभािना होती है, एक ‘धीमा’ सीखने िाला या एक ‘असफल’ बच्चा, उस बच्चे में अंतर्थनखहत ककसी कमी के कारण नहीं है, लेककन
अखधकांित: सीखने के माहौल और बच्चे की सहायता के खलए आपूर्थत प्रणाली, उसकी क्षमता के अहसास की अपयाकप्तता के कारण है, खजसका
अथक प्रणाली की खिफलता है, न कक बच्चे की। इसके खलए बच्चे को (कक्षा में) रोककर दंखडत करने के बजाय प्रणाली की गुणित्ता में सुधार के
समाधान की आिश्यकता है। ऐसा कोई अध्ययन या िोध नहीं है जो सुझाि देता है कक बच्चे के फेल होने से उसकी सीखने की गुणित्ता में
सुधार होता है। बखल्क, कई बार बच्चा स्कूल/सीखना पूरी तरह छोड देता है “। यह 2009 में प्रणाली की स्पष्ट स्िीकारोखि थी, अपनी स्ियं
की गुणित्ता सुधारने के खलए RTE लाने के खलए। उसने पयाकप्त योग्य खिक्षक, पयाकप्त संसाधन िाले स्कूल, एक साथकक पाठ्यिम, अच्छी
प्रेरणादायक पाठ्यपुस्तकें और अन्य खिक्षण सामखग्रयां, और सबसे महत्िपूणक मूल्यांकन की एक अच्छी प्रणाली सखहत- एक अच्छा सीखने का
माहौल उपलब्ध कराने में अपनी खुद की असफलता की खजम्मेदारी ली। ऐसा नहीं हुआ, जैसा कक RTE का अनुपालन नहीं करने िाले
स्कूल़ों की बडी संख्या और उसके कियान्ियन में कमी से देखा गया है।
कम से कम संसद सदस्य़ों का ये कतकव्य है कक उनके पास उपलब्ध दस्तािेज़ों को देखें और ये दस्तािेज उन्हें बताएंगे कक देि में िास्तखिक
खस्थखत क्या है। यह देि को इस प्रकार बताता ह: ै
1. 2014-15 में प्राथखमक स्तर पर (स्कूल़ों में) रुकने की दर 83.7% थी और आरंखभक स्तर पर यह 67.4% खजतनी कम थी। मोटे तौर पर
कक्षा 1 में दाखखला लेने िाले प्रत्येक 10 छात्ऱों में से िार छात्र कक्षा 8 पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड रहे थे। (U-DISE, 2014-15)
2. खिक्षक की अनुपखस्थखत प्रत्येक कदन 25% से अखधक आंकी गई है, खजसे छात्ऱों के सीखने के खराब प्रदिकन के कारण़ों में से एक के रूप में
पहिाना गया है।
3. देि के लगभग 8% प्राथखमक स्कूल एकल खिद्यालय हैं। यह खस्थखत मािक 2015 के बाद भी है जो कक RTE 2009 के सभी पहलुओं का
अनुपालन करने की अंखतम तारीख थी।
4. यह अनुमान लगाया गया है कक प्राथखमक स्कूल़ों में 9 लाख से अखधक खिक्षक़ों की कमी है; लगभग 14% सरकारी सेकें डरी स्कूल़ों में
प्रस्ताखित न्यूनतम 6 खिक्षक नहीं ह।ैं आमतौर पर खिक्षक़ों की ररखियां आकदिासी इलाक़ों और दरू दराज के गांि़ों में अखधक ह ैं जहां पर
अपयाकप्त सुखिधाओं के कारण खिक्षक तैनात होने से खहिकते हैं।
5. हमारे देि के कुछ राज्य़ों में बडी संख्या में अप्रखिखक्षत खिक्षक हैं जो कक RTE के मुताखबक पेिेिर तरीके से प्रखिखक्षत नहीं हैं। RTE की
अखनिायकता है कक सभी खिक्षक पेिेिर रूप से प्रखिखक्षत ह़ों और खनरंतर मूल्यांकन और बच्च़ों के सीखने सुधार करने में सहायक ह़ों।
6. देि के कई भाग़ों में खिक्षक़ों की खनयुखि और स्थानांतरण भ्रष्टािार का एक बडा माध्यम बन गया है। क्या हमें इन सभी प्रणालीगत
खिफलताओं के खलए बच्च़ों को खजम्मेदार बनाना िाखहए? लेककन हमारी संसद के फैसले ने कहा कक ये बच्चे ही हैं जो इस खेदजनक खस्थखत के
खलए खजम्मेदार हैं। (और इस तथाकखथत गुणित्ता के पराभि को साखबत करने के खलए कोई सबूत या तुलनात्मक िैज्ञाखनक अध्ययन नहीं
है।) यह बहुत स्पष्ट है कक मुद्दा “रोकना या नहीं रोकना नहीं है”। यह एक बडा सिाल है कक बच्चे फेल क्य़ों होते हैं। और उसके खलए खजम्मेदार
सभी कौन हैं। और कौन से िह बच्चे हैं और उनकी क्या सामाखजक आर्थथक और सांस्कृखतक पृष्ठभूखम है खजन्हें खनकाल कदया गया या व्यिस्था
से बाहर कर कदया गया। इसखलए मूल कतकव्य यह पहिानना है कक बच्चे क्य़ों पाठ्यिम के उद्देश्य़ों के मुताखबक प्रदिकन नहीं कर रहे हैं और
छात्ऱों के कंध़ों पर पूरी खजम्मेदारी डालने और उन्ह ें एक जाद ू की छडी “परीक्षा” का उपयोग करके मुख्य धारा की खिक्षा से बाहर धकेलने के
बजाय एक सामाखजक रूप से उन्मुख दखृ ष्टकोण के साथ मुद्दे को हल करने के खलए समाधान खोजना ह।ै यहां पर सरकार- बच्च़ों को दोषी के
रूप में रखकर- न्यूनतम सुखिधाएं प्रदान करने की अपनी प्राथखमक भूखमका से पीछे हट रही है जो सभी बच्च़ों को गुणित्तापूणक खिक्षा प्रदान
करती है।
इसखलए एक बार कफर एक बार कफर हमें बहस करनी होगी
1. RTE की धारा 16 की बहाली के खलए
2. 12 साल तक सभी बच्च़ों के खलए गुणित्तापूणक खिक्षा की सुखिधा प्रदान करने के खलए
3. ककसी बच्चे को फेल करके कोई भी गुणित्ता नहीं सुधार सकता ।
12. सरकारी स्कूल़ों को गैर व्यिहाररक मानते हुए उन्हें बंद करने का काम खत्म क;र ेंउन्हें पुनजीखित करें खजन्हें RTE 2009 के अनुमोदन के
बाद बंद कर कदया गया है या कफर ककसी अन्य स्कूल के साथ खिलय कर कदया गया :ह ै
सभी उपलब्ध आंकडे RTE के अनुपालन में सरकार की खिफलता को दिाकते हैं। लेककन इसके साथ ही सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
सभी बच्च़ों को सुलभता और गुणित्तापूणक खिक्षा उपलब्ध कराने के अपने कतकव्य से पीछे हट रही है। खिखभन्न स्रोत़ों से प्राप्त ररपोटों के
मुताखबक, कें द्र गैर व्यिहाररक का ठप्पा लगाकर और साथ ही “दक्षता बढ़ाने” के भाग के रूप में लगभग 2.6 लाख सरकारी स्कूल़ों का
“स्थान-खिखिष्ट खिलय या बंद करने इरादा कर रहा है। स्कूल़ों के खिलय और बंद करने के पररणामस्िरूप स्कूल से बाहर खनकाले जाने िाले
बच्च़ों, खासतौर पर सीमांत और िंखित समुदाय के बच्च़ों और लडककय़ों की संख्या बढ़ रही है। बंद करने या खिलय की नीखत भी RTE
अखधखनयम के पीछे की मूल भािना का उल्लंघन है, कई राज्य़ों में; खिलय ककए गए स्कूल बस्ती के 1 ककमी के दायरे से बहुत दरू ह।ैं बच्चे कई
कारण़ों से नए स्कूल में जाने से खहिककिाएंगे जैसे कक स्कूल की बढ़ी हुई दरू ी, और साथ ही उच्च जातीय इलाक़ों में सांस्कृ खतक कारण़ों से भी
जहां खनिली जाखतय़ों और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे भयभीत महसूस करते हैं, और साथ ही सुरक्षा के कारण़ों से भी। यह 1 ककलोमीटर
के दायरे में स्कूल सुखनखित करने की सरकार की जिाबदेही को बाखधत करता है। स्कूल़ों के खिलय का प्रािधान बनाकर या सरकारी स्कूल़ों
को बंद करके खनजीकरण का मागक प्रिस्त ककया जा रहा है। सुखिधाओं की कमी के कारण सरकारी स्कूल़ों को बंद करने का कठोर कदम
उठाने के बजाय, बुखनयादी ढांिे और धन के आिंटन के मूल मुद्दे को हल करने खलए उपाय ककए जाने हैं और इन स्कूल़ों में बुखनयादी ढांिे
और अन्य सुखिधाओं को बेहतर बनाने के खलए आिश्यक सहयोग ककया जाना है।
13. प्रखत कक्षा िगों में खनयखमत खिक्षक भती कर:ें RTE के मानदडं ़ों के मुताखबक खिक्षक़ों की उपखस्थखत और छात्र-खिक्षक संपकक प्रत्येक बच्चे का
अखधकार है। RTE के 9 साल़ों के बाद भी सरकार कम से कम दो खिक्षक़ों के मानदंड को सुखनखित कर पाने की खस्थखत में भी नहीं है। यकद
हम गुणित्तापूणक खिक्षा िाहते हैं तो प्रत्येक कक्षा िगक के खलए एक खिक्षक अपररहायक है। खिक्षक़ों की कमी भारतीय स्कूल़ों की एक बडी
बीमारी है। इस बात को सुखनखित करना िाखहए कक सभी स्कूल़ों में पयाकप्त संख्या में खिक्षक खनयुि ककए जाएं। स्कूल़ों में प्रत्येक कक्षा में एक
खिक्षक जरूर खनयुि होना िाखहए। िारीररक खिक्षा, कला, कायाकत्मक खिक्षा इत्याकद को पाठ्यिम का खहस्सा समझा जाना िाखहए और
पाठ्यिम के इन खहस्स़ों के खलए भी खिक्षक खनयुि होना िाखहए। हमें खििेष आिश्यकता िाले बच्च़ों की समस्याओं का समाधान करना है
और उनकी खििेष आिश्यकताओं के समाधान के खलए योग्य खिक्षक भी आिश्यकता का आकलन करते हुए खनयुि ककए जाना िाखहए।
14. खिक्षक़ों के व्यािसाखयक खिकास के खलए कायकिम सुखनखित कर: ें खिक्षक सभी के खलए समािेिी और समान गुणित्तापूणक खिक्षा प्राप्त करने
की
कुं जी हैं। खिक्षा जीिन बदल देती है: यह आर्थथक और सामाखजक खिकास की िालक है; यह िांखत, सखहष्णुता और सामाखजक समािेि को
बढ़ािा देती है; और गरीबी उन्मूलन और व्यखिगत पूर्थत प्राप्त करने के खलए महत्िपूणक है। इसखलए स्थानीय खिखिष्टताओं पर खििार करते
हुए, खिक्षक़ों के रूपांतरण के खलए कायकिम होने िाखहए (खिक्षक़ों की योग्यता में खिकास सखहत)।
15. संखिदा खिक्षक़ों की खनयुखि करके खिक्षक़ों का िोषण बंद कर: ें पैरा टीिर, खिक्षा कमी इत्याकद खिखभन्न नाम़ों से संखिदा खिक्षक़ों की भती
करने की प्रिृखत्त है, खजन्हें न्यूनतम िेतन ितों का पालन नहीं करते हुए कम िेतन कदया जाता है और इस तरह इस िगक का िोषण ककया
जाता है। यह बंद होना िाखहए क्य़ोंकक खनयखमत खिक्षक गुणित्तापूणक खिक्षा प्रदान करने के खलए पूिक ितक है।
16. संखिधान में खनखहत मूल्य़ों को बढ़ािा देने के खलए संिैधाखनक लक्ष्य़ों के अनुरूप राष्ट्रीय पाठ्यिम की रूपरेखा तैयार क: रहें मारे जैसे
बहुधमी, बहु-सांस्क-खतक और बहु-जातीय समाज में इन मूल्य़ों के अियि़ों पर सािधानीपूिकक खििार करने की आिश्यकता है। स्पष्ट रूप
से, इन मूल्य़ों की पहिान ककसी खास धमक से नहीं होनी िाखहए। लोकतंत्र, धमकखनरपेक्षता, लैंखगक समानता, श्रम का सम्मान, खनष्पक्षता
और समानता और सामाखजक न्याय और िैज्ञाखनक स्िभाि के खििार को पाठ्यिम में जोडा जाना िाखहए। खिक्षा कोई साधन प्रकिया नहीं
है, बखल्क एक बदलाि की प्रकिया है जो एक न्यायसंगत और सतत सामाखजक खिकास के अनुकूल है। राष्ट्र की खिखिधता को कायम रखते हुए
पाठ्यिम का खिकास करें। पाठ्यिम तैयार करते समय, खिखभन्न पहलुओं की खभन्नता और खिखिधता को ध्यान में रखना होगा- भौगोखलक,
जलिायु, भाषाई, सांस्कृखतक पहलू। एक संतुखलत पाठ्यिम में सािकभौखमक, राष्ट्रीय, उप राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय तत्ि़ों का सामंजस्य
होना िाखहए। कुछ सािकभौखमक तत्ि हैं जो हर जगह पाठ्यिम का खहस्सा बनते हैं। राष्ट्रीय तत्ि भी हैं जो पूरे देि में समान होने िाखहए।
इसखलए, पाठ्यिम को प्रत्येक राज्य के लोग़ों की िास्तखिकता और सरोकार प्रदर्थित करना िाखहए। एक लिीला पाठ्यिम सामाखजक
बदलाि से उत्पन्न िुनौखतय़ों का सामना करने के खलए खिकखसत होता रहेगा। इस तरह तैयार पाठ्यिम िंखित िगों सखहत सभी लोग़ों के
सामाखजक खिकास के प्रखत लखक्षत होना िाखहए। इसखलए खनम्नखलखखत पहलू सिाकखधक महत्िपूणक हैं।
i. सीखने के माध्यम के रूप में मातृभाषा का उपयोग: हमें इसे गैर-परािम्य खस्थखत के रूप में तय करना होगा। आधुखनक खिक्षा के सभी
िैखक्षक खसद्धांत और समझ सीखने के माध्यम के रूप में मातृभाषा के महत्ि को कायम रखते हैं। ककसी भी समझदार समाज में सीखने की
भाषा केिल बच्चे की मातृभाषा हो सकती ह।ै हालांकक, आज के िैिीकरण की दखु नया में अंग्रेजी के महत्ि पर खििार करते हुए, इसे प्रभािी
रूप से पढ़ाया जाना िाखहए, इसे खद्वतीयक या खिदेिी भाषा के रूप में पढ़ाने के खलए, कई गैर-अंग्रेजी भाषी देि़ों में अपनाए गए िैक्षखणक
खिखधय़ों का उपयोग करना िाखहए।
ii. पूरे देि में सभी बच्च़ों के खलए कोई भी एक भाषा अखनिायक नहीं करना िाखहए: बच्चे को मातृभाषा के अलािा अन्य भारतीय भाषाओं से
पररखित कराने का प्रयास करना िाखहए। मानि में बहु-भाषी सीखने की स्िाभाखिक क्षमता होती है, बिते की सीखने के िुरुआती िषों में
मातृभाषा में एक ठोस नींि रखी जाए।
iii. खिक्षा में सभी सांप्रदाखयक एजेंडे और सबूत़ों द्वारा न समर्थथत इखतहास के एक तककहीन दृखष्टकोण को बढ़ािा देने का खिरोध क: रें
लोकतंत्र, धमकखनरपेक्षता, लैंखगक समानता, श्रम का सम्मान, खनष्पक्षता और समानता और सामाखजक न्याय और िैज्ञाखनक स्िभाि के
खििार कुछ सािकभौखमक मूल्य हैं खजन्हें पाठ्यिम में जोडा जाना िाखहए। हमें पाठ्यिम संिोधन में सांप्रदाखयक घुसपैठ और खििार भरने
की भयािह प्रकिया का खिरोध करना होगा।
iv. ऐसी सीखने का प्रकिया अपनाएं जो बच्चे की खििेिनात्मक सोि और खििेिनात्मक चितन को बढ़ा:ए सं ीखने की प्रकिया बाल-कें कद्रत
होना िाखहए। 10 जानकाररय़ों को रटकर और दोहराकर सीखने के बजाय ज्ञान और महत्िपूणक खिश्लेषणत्मक क्षमताओं के खनमाकण पर जोर
होना िाखहए। खिक्षक की खिक्षा पर इस जोर के पररितकन पर ध्यान कें कद्रत करना िाखहए। कक्षा का िातािरण और यहां तक कक आदान-
प्रदान की प्रकिया भी लोकतांखत्रक होनी िाखहए।
v. बच्चे को िैज्ञाखनक स्िभाि को खिकखसत करने और खिज्ञान की खिखध को समझने और अभ्यास करने के खलए प्रोत्साखहत करना िाखहए:
सीखने की पूरी प्रकिया सीखने िाले को सिाल उठाने के खलए सक्षम करेगी। सीखने का प्रकिया सीखने िाली के अन्िेषण और पूछताछ के
कौिल को बढ़ािा देना िाखहए। पाठ्यपुस्तकें और अन्य सीखने के संसाधन खुले खसरे िाले होने िाखहए ताकक बच्चा प्रकिया के माध्यम से
सीखने में सक्षम हो सके। संिैधाखनक मानदंड़ों के अंतगकत खिक्षा के माध्यम से िैज्ञाखनक, तककसंगत और खििेिनात्मक सोि को सुखनखित
करना िाखहए।
vi. उम्र के अनुसार छात्ऱों को काम की दुखनया के बारे में खुद के अनुभि से सामना कराना िाखहए: यह मुद्दा न केिल गरीब़ों के मामले में
स्कूली खिक्षा की बाधाओं को दरू करने के खलए बखल्क जाखत आधाररत खिभाजन के भारतीय संदभक में काम के प्रखत नए मूल्य़ों को स्थाखपत
करने के खलए भी बहुत महत्िपूणक ह।ै संबंखधत दसू रा मुद्दा छात्ऱों को खिज्ञान, प्रौद्योखगकी, पाररखस्थखतकी, ऊजाक और समाज की नई और
उभरती हुई दखु नया के खलए तैयार करने के खलए स्कूल को साधन संपन्न करना ह।ै बेहतर और न्यायपूणक भारत के खलए अगली पीढ़ी को
तैयार करने के खलए खिज्ञान, प्रौद्योखगकी, पाररखस्थखतकी और समाज पर उपयुि दखृ ष्टकोण और कौिल खिकखसत करना होगा।
17. सेकें डरी खिक्षा और उच्चतर खिक्षा के बीि स्िाभाखिक संबंध स्थाखपत क:र ें ककसी भी राष्ट्र के मुख्य िैखक्षक उद्देश्य़ों में से एक खिक्षा की एक
ऐसी प्रणाली खिकखसत करना है जो उसके लोग़ों को कायक और जीिन और कौिल और प्रखतभा को खिकखसत करने की अनुमखत देगी , खजसकी
उन्हें जीिन भर आिश्यकता होगी। ऐसा करने के खलए सेकें डरी खिक्षा और उच्चतर खिक्षा के बीि मजबूत संबंध सुखनखित करना होगा।
दोऩों के बीि स्कूली छात्ऱों के फायदे के खलए खिक्षक व्यािसाखयक खिकास और छात्ऱों के आउटरीि कायकिम़ों के खलए सहयोग हो सकता है।
18. खिकें द्रीकृ त और गैर-नौकरिाही सरकारी संरिना को अपनाए: ं स्कूल़ों के िैक्षखणक प्रबंधन में स्थानीय खनकाय़ों को िाखमल करने की
संभािना को तलािा जाना िाखहए। सामाखजक भागीदारी को बढ़ािा देने और साथ ही खिखिष्ट स्थानीय मामल़ों के समाधान के खलए
िैक्षखणक प्रबंधन का खिकें द्रीकरण अखनिायक है।
19. सभी छात्ऱों के पास आधुखनक िैक्षखणक तकनीकी सुखिधाओं तक मुफ्त पहुंि होनी िाखहए: यह ज्ञान का युग है।
आधुखनक तकनीक का उभरता हुआ क्षेत्र हमें खबना त्िररत रूप से उभर रही निीनतम जानकाररय़ों तक पहुंिने के खलए पयाकप्त गुंजाइि
प्रदान करता है। इसखलए हमें खिक्षा को नए िैखिक, संिार के संदभक में रखना होगा। प्रत्येक बच्चे को अपने सीखने को सक्षम करने के खलए
सूिना संिार प्रौद्योखगकी (ICT) सखहत िैक्षखणक प्रौद्योखगकी तक पहुंि और इसके खन: िुल्क उपयोग का अखधकार होना िाखहए। खिक्षक़ों
को खििेकपूणक तरीके से प्रौद्योखगकी का उपयोग करने के खलए उखित प्रखिक्षण कदया जाना िाखहए ताकक उन्हें प्राप्तकताक िाले खसरे पर होने के
बजाय कंटेंट उत्पादक के रूप में सक्षम ककया जा सके। सभी स्कूल़ों में समान रूप से ICT अधोसंरिना स्थाखपत की जानी िाखहए। उपरोि
लक्ष्य़ों की प्राखप्त के खलए माखलकाना सॉफ्टिेयर और खििेता-उन्मुख कंटेंट के बजाय, खिक्षाखिद़ों द्वारा प्रदान की गई सामग्री (न कक बाजार
की ताकत़ों द्वारा) के साथ FOSS (मुफ्त और खुले स्रोत िाले सॉफ्टिेयर) आधाररत सॉफ्टिेयर का उपयोग होना िाखहए।
20. खिक्षक़ों की खिक्षा को पुनर्थिकखसत ककया जाना िाखहए, ताकक खिक्षक पेिेिर बन स:क ेंखिक्षक़ों की खिक्षा और खिक्षक़ों के रूपांतरण पर
प्रमुख जोर कदया जाना िाखहए। सभी स्तऱों पर खिक्षक़ों के व्यािसाखयक खिकास में उखित आिंटन और समुखित खनिेि ककया जाना
िाखहए। खनयखमत अंतराल पर व्यािसाखयक खिकास कायकिम़ों के खलए गुंजाइि होगी।
21. लोकतांखत्रक अखधकाऱों और लोकतांखत्रक खनकाय़ों को मजबूत करने की गुंजाइि होनी िाखहए: छात्ऱों को संघ बनाने की स्ितंत्रता होनी
िाखहए। छात्ऱों को खनणकय लेने िाले खनकाय़ों में प्रखतखनखधत्ि प्रदान ककया जाना िाखहए। स्कूल असेंबखलय़ों को लोकसंखत्रक तरीके से गरठत
ककया जाएगा और उनके कायों को सुखनखित ककया जाएगा। अखभभािक़ों की सखमखतय़ों को भी मजबूत ककया जाएगा।
22. मध्यान्ह भोजन की गुणित्ता सुखनखित की जानी िाखहए और कक्षा1 2 तक सभी बच्च़ों को मध्यान्ह भोजन कदया जाना िाखहए: प्रत्येक बच्चे
के खलए पयाकप्त पोषण सुखनखित करने के खलए मध्यान्ह भोजन की मात्रा और गुणित्ता को बढ़ाया जाना िाखहए। िूंकक पोषण िारीररक और
मानखसक खिकास का एक अखनिायक घटक है, इसखलए इसे गुणित्तापूणक खिक्षा के एक अखभन्न घटक के रूप में देखा जाना िाखहए। उन सभी
खबिौखलय़ों को दरू करें जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस योजना से फायदा उठा रह े ह।ैं योजना की खनगरानी और पयकिेक्षण की खजम्मेदारी
SMC को दी जानी िाखहए। स्थानीय स्ििासन की भागीदारी सुखनखित की जानी िाखहए। मध्यान्ह भोजन के प्रािधान में काम करने िाले
लोग़ों को पयाकप्त रूप से िेतन खमलना िाखहए।
23. खििेष आिश्यकताओं िाले बच्च़ों की समुखित देखभाल और खिक्षा सुखनखित क:र ेंखनयखमत स्कूल़ों में खििेष जरूरत़ों िाले बच्च़ों को खिक्षा
प्रदान करने के खलए सुखिधाओं और कमकिाररय़ों की व्यिस्था खनर्थमत की जानी िाखहए। िैक्षखणक प्रिासक़ों और खिक्षक़ों को CWSN के
खिषय में संिेदनिील बनाना िाखहए।
24. अखिक्षा को खमटाने के खलए साक्षरता कायकिम़ों के सामाखजक िलन को िापस लाए: दं िे में अभी भी मौजूद अखिक्षा का प्राथखमकता के साथ
समाधान ककया जाना िाखहए। लगभग 30 करोड की भारतीय जनसंख्या अभी भी अखिक्षा के अंधेरे िरण में है। संपूणक साक्षरता अखभयान
के अनुभि़ों के आधार अखिक्षा खमटाने के कायकिम िृहत सामाखजक भागीदारी के साथ तैयार ककए जाने िाखहए। सामाखजक क्षमताओं का
उपयोग ककया जाएगा। और आजीिन खिक्षा के साथ नागररक खिक्षा का एक नया तंत्र खिकखसत ककया जाना िाखहए। राज्य संसाधन कें द्र
(SRC) जैसे संस्थागत तंत्र को कफर से स्थाखपत ककया जाना िाखहए और क्षेत्र खििेष के मुद्द़ों को हल करने के खलए मजबूत करना िाखहए।
साक्षरता और नागररक खिक्षा कायकिम को आजीखिका कायकिम़ों से जोडा जाएगा।
25. एक व्यापक सतत और आजीिन खिक्षा नीखत तैयार कर: ें ककसी भी साक्षरता कायकिम की खनरंतरता में फॉलो-अप कायकिम भी होने िाखहए।
नागररक खिक्षा कायकिम के साथ सतत और आजीिन खिक्षा का संयोजन करने की आिश्यकता है। इस संदभक में राज्य़ों के परामिक से एक
खिस्तृत नीखत बनाई जानी है। खनरंतरता सुखनखित करने के खलए जन संस्थान खिकखसत करने की गुंजाइि होना िाखहए,
26. खिक्षा के संिालन में समुदाय, स्थानीय स्ििासन की भागीदारी सुखनखित कर: ें प्रभािी कियान्ियन और सामाखजक स्िाखमत्ि के खलए
समुदाय की भागीदारी सिाकखधक महत्िपूणक है। यह खसफक खिकें द्रीकरण के माध्यम से ही संभि है, इस प्रकार राज्य को खिक्षा के संबंध में
कायकिम तैयार करने, योजना और कियान्ियन की खजम्मेदारी स्थानीय स्ि-सरकाऱों को सौंपना है।
27. सभी स्तऱों पर कायकिम़ों के उखित कियान्ियन को सुखनखित करने के खलए सामाखजक अंकेक्षण के खलए एक तंत्र खिकखसत ककया जाना
िाखहए: यह सुखनखित करने के खलए कक उनके खलए जिाबदेही सिाकखधक अखनिायक है,
प्रणालीगत जिाबदेही से अलग सामाखजक जिाबदेही के खलए तंत्र खिकखसत ककया जाएगा। सामाखजक जिाबदेही के खलए समाज की यह
आकलन करने में एक भूखमका होनी िाखहए कक क्या व्यिस्था उद्देश्य़ों और समय रेखा के अनुसार पररणाम दे रही है, जैसा पररकखल्पत
ककया गया था।
मांगें एक नजर में :
1. खिक्षा की नीखतय़ों का गठन संिैधाखनक दाखयत्ि पर आधाररत होना िाखहए
2. खिक्षा प्रणाली में कोई भी सुधार लोकतंत्र, समानता और धमकखनरपेक्षता के संिैधाखनक खसद्धांत को कायम रखना िाखहए। सामाखजक न्याय और
खनष्पक्षता गैर-परािम्य हैं
3. कानूनी अखधकार के रूप में उच्च माध्यखमक खिक्षा के साथ ECEC, पूिकस्कूली और माध्यखमक को िाखमल करके, RTE अखधखनयम के दायरे को
अंतराकष्ट्रीय रूप से मान्य बिपन की पररभाषा के अनुसार, जन्म से 18 साल़ों तक बढ़ाएं
4. सच्चे अथक और भािना में मानक़ों और मानदंड़ों के साथ RTE अखधखनम के संपूणक अनुपालन सुखनखित करें और इसके कियान्ियन के खलए सरकार
को जिाबदेह बनाएं.
5. समुदाय के सीमांत िगों (SC, ST, गांि की लडककय़ों, अल्पसंख्यक समूह़ों, प्रिाखसय़ों आकद) के खलए एक खमिन मोड में खिक्षा नीखत की कठोर
समीक्षा और सुधार ककए जाने की आिश्यकता है
6. सभी स्कूल़ों और ECCE कें द्ऱों में सकुिल और सुरखक्षत स्कूल पयाकिरण के सामाखजक समािेि और प्रािधान को सुखनखित करने के खलए कडे और
बारीकी से खनगरानी के कदम उठाएं और आकदिासी, दखलत, अल्पसंख्यक बच्च़ों, खििेष रूप से लडककय़ों और खििेष जरूरत़ों िाले बच्च़ों और अन्य
कमजोर समूह़ों द्वारा खिक्षा के खलए सामना की जा रही खिखिष्ट बाधाओं का समाधान करें
7. खिक्षा को एक पररितकनकारी िखि बनना िाखहए, मखहलाओं का आत्मखििास खनर्थमत करना िाखहए, और समाज में उनकी खस्थखत में सुधार करना
और असमानताओं को िुनौती देना िाखहए
8. 18 साल की उम्र तक बाल श्रम का पूरी तरह उन्मूलन सुखनखित करें और बाल श्रम (खनषेध और खिखनयमन) संिोधन अखधखनयम 2016 की धारा
3 को हटाएं जो कक ‘पाररिाररक उद्यम’ में बाल श्रम को िैध करता है
9. ‘सामान्य स्कूल प्रणाली’ सुखनखित करें और बहु-स्तरीय खिक्षा प्रणाली से बिें जो खिक्षा में असमानता का कारण बनती है
10. सािकभौखमक रूप से सहमखत प्राप्त खिक्षा खित्तपोषण बेंिमाकक और कोठारी आयोग की खसफाररि़ों के साथ ही राष्ट्रीय नीखतय़ों की पररकल्पना के
अनुसार GDP का 6% उपलब्ध कराएं
11. RTE की खनरस्त धारा 16 को बहाल करना- खिक्षा के खलए बच्च़ों के मौखलक अखधकार की रीढ़- RTE का कियान्ियन और गुणित्तापूणक सीखने
के माहौल का प्रािधान सुखनखित करें, बच्च़ों को रोके रखने और स्कूल से खनकालने के खलए प्रणालीगत ‘असफलता’ के बोझ को न रखें
12. सरकारी स्कूल़ों को गैर व्यिहाररक मानते हुए उन्हें बंद करने का काम खत्म करें ; उन्हें पुनजीखित करें खजन्हें RTE 2009 के अनुमोदन के बाद
बंद कर कदया गया है या कफर ककसी अन्य स्कूल के साथ खिलय कर कदया गया है
13. प्रखत कक्षा िगों में खनयखमत खिक्षक भती करें
14. खिक्षक़ों के व्यािसाखयक खिकास के खलए कायकिम सुखनखित करें
15. संखिदा खिक्षक़ों की खनयुखि करके खिक्षक़ों का िोषण बंद करें
16. संिैधाखनक लक्ष्य़ों के अनुरूप राष्ट्रीय पाठ्यिम की रूपरेखा तैयार करें और संखिधान में खनखहत मूल्य़ों को खिकखसत करने में बच्चे की मदद करें।
और राष्ट्र की खिखिधता को कायम रखते हुए पाठ्यिम का खिकास करें- मातृभाषा को खिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग करके , यह सुखनखित करके
कक देि भर में सभी बच्च़ों के खलए कोई एक भाषा अखनिायक नहीं की जानी िाखहए, खिक्षा में सभी सांप्रदाखयक एजेंडे और इखतहास के तककहीन
दखृ ष्टकोण जो कक सबूत़ों द्वारा समर्थथत नहीं ह ैं उन का खिरोध करके , ऐसी सीखने की प्रकियाओं को अपनाकर जो बच्चे की खििेिनात्मक सोि और
खििेिनात्मक चितन बढ़ािा दे और और िैज्ञाखनक स्िभाि को समझने और खिज्ञान की पद्धखत को समझने के खलए बच्चे को बढ़ािा देकर। और उम्र के
अनुसार छात्ऱों को काम की दखु नया के बारे में खुद के अनुभि से सामना कराना िाखहए
17. सेकें डरी खिक्षा और उच्चतर खिक्षा के बीि स्िाभाखिक संबंध स्थाखपत करें
18. खिकें द्रीकृत और गैर-नौकरिाही सरकारी संरिना को अपनाएं
19. सभी छात्ऱों के पास आधुखनक िैक्षखणक तकनीकी सुखिधाओं तक मुफ्त पहुंि होनी िाखहए
20. खिक्षक़ों की खिक्षा को पुनर्थिकखसत ककया जाना िाखहए, ताकक खिक्षक पेिेिर बन सकें
21.लोकतांखत्रक अखधकाऱों और लोकतांखत्रक खनकाय़ों को मजबूत करने की गुंजाइि होनी िाखह ए
22. मध्यान्ह भोजन की गुणित्ता सुखनखित की जानी िाखहए और कक्षा 12 तक सभी बच्च़ों को मध्यान्ह भोजन कदया जाना िाखहए
23. खििेष आिश्यकताओं िाले बच्च़ों की समुखित देखभाल और खिक्षा सुखनखित करें
24. अखिक्षा को खमटाने के खलए साक्षरता कायकिम़ों के सामाखजक िलन को िापस लाएं
25. एक व्यापक सतत और आजीिन खिक्षा नीखत तैयार करें
26. खिक्षा के संिालन में समुदाय, स्थानीय स्ििासन की भागीदारी सुखनखित करें
27. सभी स्तऱों पर कायकिम़ों के उखित कियान्ियन को सुखनखित करने के खलए सामाखजक अंकेक्षण के खलए एक तंत्र खिकखसत ककया जाना िाखहए
No comments:
Post a Comment