*रपट: राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली, नई दिल्ली (30 अप्रैल 2023)*
- मास्टर वजीर सिंह
देश की राजधानी नई दिल्ली स्थित हरकिशन सिंह सुरजीत भवन में गत 30 अप्रैल 2023 को अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क और भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के संयुक्त तत्वाधान में एक राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली का संयुक्त आयोजन किया गया। आईफुक्टो, फेडकूटा, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट, स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, एस.एस.आई, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, आरटीई फॉरम आदि एक दर्जन से ज़्यादा जनसंगठनों ने सहयोग किया। इस राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली में देशभर के करीब 650 शिक्षकों, छात्रों एवं एकेडमीशियनों और वालंटियरों ने भाग लिया। जन विज्ञान आंदोलन और भारत ज्ञान-विज्ञान समिति से जुड़े हुए जम्मू एण्ड कश्मीर सहित 22 राज्यों से करीब 450 तथा अन्य सहयोगी संगठनों के करीब 200 प्रतिनिधि शामिल रहे।
उद्घाटन सत्र की शुरूआत कला जत्थे के गीत से हुई। जिसकी अध्यक्षता अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ0 सत्यजीत रथ, जे.एफ.एम.ई. की चेयरपर्सन नंदिता नारायण और एस.एफ.आई. के सचिव मन्मुख विश्वास के संयुक्त अध्यक्षमंडल ने की। ए.आई.पी.एस.एन की महासचिव आशा मिश्र ने *"सेव एजुकेशन, सेव द नेशन"* अभियान पर संक्षिप्त प्रस्तुति दी। जिसमें विभिन्न राज्यों में की गई पहलकदमियों एवं कार्यक्रमों बारे बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब देश कोरोना के कहर से जूझ रहा था तब लोगों की दुर्दशा पर ध्यान देने की बजाय केन्द्र सरकार ने नई शिक्षा नीति-2020 को जबरदस्ती थोप दिया। जबकि देश की जनजातियां एवं अनेक अनुसूचित जातियां आज भी मूलभूत शिक्षा से बहुत दूर हैं। उन्होंने अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क द्वारा करोना काल में लोगों की मदद बारे भी बताया। उनकी प्रस्तुति में यह उभर कर आया कि सामूहिक प्रयासों तथा राज्यों में क्या घटित हो रहा था।
उन्होंने अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क की देश भर में *"सेव एजुकेशन, सेव द नेशन"* अभियान के तहत विभिन्न राज्य इकाइयों द्वारा 11 नवंबर 2022 से 29 अप्रैल 2023 तक चली गतिविधियों बारे बताया। इसके लिए जे.एफ.एम.ई. के साथ मिलकर एक व्यापक आधार वाली कमेटी का गठन किया गया। फिर राज्यों में जाकर अभियान की सामग्री जैसे पंफलेट, पोस्टर एवं स्टीकर आदि के साथ स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों के साथ वार्ता की सामग्री तैयार की गई। राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 11 नवंबर को राज्य स्तरीय कन्वेंशनें और जनसभाएं की गई तथा अभियान के लिए तैयार की गई सामग्री का वितरण किया गया। अनेक राज्यों में कुछ क्षेत्रों में सरकार द्वारा स्कूलों को बंद करने की योजना के खिलाफ पहलकदमियां की गई। पांच पोजिशन पेपर तथा एक उच्चतर शिक्षा पर वार्ता पेपर पंचायत एवं गांव स्तर पर चर्चा के लिए तैयार किए गये।
ग्राम पंचायत के स्तर पर दिवार लेखन, पोस्टर चिपकाने तथा पर्चे बांटने के कार्य के साथ-साथ हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया। फरवरी में खंड स्तरीय कन्वेंशनें/शिक्षा सभाएं और मार्च माह में जिला स्तरीय कन्वेंशनें/शिक्षा सभाएं आयोजित की गई। अप्रैल में राज्यों में अलग-अलग राज्य स्तरीय सांस्कृतिक टीमों द्वारा कला जत्थे चलाए गए। यह कार्यक्रम देशभर के 78 जिलों में किए गये। ये कला जत्थे हमारे स्वयंसेवकों को तैयार करने, संगठनों एवं जनसंगठनों को मोबलाइज करने तथा समाज में जागरूकता फैलाने के लिए चलाए गए। इनका उद्देश्य समविचारों वाले धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक आंदोलनों को एक साझा प्लेटफार्म पर लाना सुनिश्चित करना था ताकि एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया जा सके।
इस अभियान में स्कूल बंधीकरण और स्कूल एकीकरण का एकमात्र मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया। यह अभियान मध्य प्रदेश, झारखंड व हरियाणा आदि विभिन्न राज्यों में चलाया गया और अनेक तरीकों से हस्तक्षेप की पहल की गई। यह अभियान देश के 22 राज्यों, 250 जिलों, 550 खंडों और 15 हजार गांवों में 10 लाख से अधिक लोगों के बीच बातचीत रखने तथा दो लाख से ज्यादा परिवारों के दरवाजे तक दस्तख्त देने में सफल रहा। इस अभियान के तहत 10 लाख लोगों के हस्ताक्षर भी एकत्रित किए गए। दो हजार गांवां में ए.आई.पी.एस.एन. तथा भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के लर्निंग सेंटर चलाए जा रहे हैं ताकि ड्रॉपआॅउट को रोका जा सके।
केरल सरकार की उच्चतर शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने शिक्षा असैम्बली का उद्घाटन किया। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में बताया कि देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन किया जा रहा है। उनमें से मुगल इतिहास को हटा दिया गया है। नई शिक्षा नीति, आधुनिक शिक्षा के सभी पक्षों को संबोधित करती है लेकिन बड़ी ही चालाकी से सत्ताधारी पार्टी के वैचारिक एजेंडों को खाली जगह में घुसाया गया है। प्रस्तावित दस्तावेज आरक्षण जैसे संवैधानिक मानदंडों पर पूर्ण रूप से चुप्पी साधता है बल्कि इसमें आरक्षण पर एक भी शब्द या लाइन नहीं लिखी गई है। यह नीति संघीय ढांचे के सिद्धांत को पूर्ण रूप से खारिज करके केंद्रीयकरण को बढ़ावा देती है। इसमें विद्यायी या सामाजिक जांच-पड़ताल का कोई भी प्रावधान नहीं रखा गया है।
इस नीति पर देश की संसद में पेश करके कोई बहस नहीं करवाई गई बल्कि जान बुझकर संसद को पूर्ण रूप से बाईपास किया गया। केवल मात्र एक विज्ञापन द्वारा नई शिक्षा नीति पर जनता के विचार मांगे गए थे लेकिन सभी सुझावों और उत्तरों को नकार दिया गया। यह नई शिक्षा नीति 36 वर्षों बाद आई है, इससे पूर्व 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई थी। अतः कोई भी नई शिक्षा नीति लाने से पूर्व पहले वाली शिक्षा नीति के गुण-दोषों की जांच-पड़ताल की जानी चाहिए थी। लेकिन नई शिक्षा नीति बनाने वालों ने कभी भी पूर्व शिक्षा नीति को पढ़ने एवं इसके प्रभावों का आकलन करने का प्रयास ही नहीं किया। यू.जी.सी. के पूर्व चेयरमैन सुखदेव थोराट ने अपने संबोधन में कहा कि 1948, 1966 और 1986 की पूर्व शिक्षा नीतियां शिक्षा क्षेत्र के व्यापक अध्ययन पर आधारित थी।
1948 के राधाकृष्णन आयोग तथा 1966 के कोठारी आयोग ने शिक्षा की कमियों एवं सकारात्मकता का अध्ययन किया और कई नए सुझाव दिए। यदि हम वर्तमान दस्तावेज(एन.ई.पी.) पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित नीतियों की नकल मारी गई लगती है। थोराट ने आगे कहा कि 1986 के बाद तथा 1996 में रिवीजन के बाद हमारे शिक्षा का क्षेत्र भारी परिवर्तनों से गुजरा है। सन 1966 तक देश में मुश्किल से कोई प्राइवेट कॉलेज होता था लेकिन आज आधे से ज्यादा शिक्षण संस्थाएं प्राइवेट हैं। वर्तमान नीति इस बदलाव को नहीं देखती। मैं ऐसा सोचता हूं कि सरकार ने शिक्षा क्षेत्र की जरूरतों का आकलन करने के स्वर्ण अवसर को खो दिया है। नई शिक्षा नीति में सुझाव दिया गया है कि केंद्रीय व राज्यों के विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए एक सार्वजनिक टेस्ट (सी.यू.ई.टी.) होना चाहिए। जबकि हमारे देश में पहले से ही इंजीनियरिंग के लिए जे.ई.ई. तथा मेडिकल के लिए एन.ई.ई.टी. जैसी प्रवेश परीक्षाएं प्रचलित हैं।
तमिलनाडु का अनुभव स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि गांव के गरीब छात्र, खासकर लड़कियां इस नई योजना का शिकार होंगे। वे कोचिंग केंद्रों तक नहीं जा सकेंगे और यदि जाते भी हैं तो प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग लेने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए। लेकिन देखने में आया है कि ऐसे छात्र जो बोर्ड परीक्षाओं में तो कम अंक अर्जित करते हैं जब कोचिंग क्लास लगाने के कारण मेडिकल व इंजीनियरिंग की सीटों पर दाखिला लेने में ज्यादा सफल हो जाते हैं। केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों की नई प्रवेश परीक्षा सी.यू.ई.टी. में भी ऐसा ही होगा।
स्कूली शिक्षा की पूर्व डीन प्रोफेसर अनीता रामपाल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रारंभिक दशकों में उच्चत्तर शिक्षा में जब सार्वजनिक संस्थाएं खोली गई, तब भी स्कूली शिक्षा में लगातार अनेक कमजोरी रही। भारत में सभी कमेटियों द्वारा शिक्षा पर जी.डी.पी. का 6 फीसदी खर्च करने की सिफारिशें की गई है। लेकिन अब अधिकतम केवल 3 फीसदी ही आवंटित किया जा रहा है। मौलिक शिक्षा में नामकरण पर 90 फीसदी पहुंचने के बावजूद उच्चत्तर शिक्षा में ड्रॉपआउट है। वर्तमान में माध्यमिक स्तर पर लगभग 50 फीसदी नामकरण ही होता है। शिक्षा का अधिकार कानून (आर.टी.ई.-2009) में 6 से 14 वर्ष की आयु तक फ्री में अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान होने के बावजूद नई शिक्षा नीति (एन.ई.पी.-2020) में इसे छोड़ दिया गया है। शिक्षा अधिकार कानून-2009 में अच्छी गुणवत्ता की सार्वभौमिक शिक्षा की बात की गई थी लेकिन नई शिक्षा नीति में केवल प्रारंभिक बाल देखभाल व शिक्षा के सार्वभौमीकरण तक सीमित कर दिया गया है। केवल ई.सी.सी.ई. को छोड़कर सार्वभौमीकरण शब्द का उपयोग इस नीति में कहीं नहीं किया गया है। नई शिक्षा नीति, ऑनलाइन शिक्षा को बहुत ज़्यादा प्रमुखता प्रदान करती है कि कल को सरकार वास्तविक भौतिक स्कूलों में दाखिला लेने के महत्व से भी इंकार कर सकती है।
भूतपूर्व उपकुलपति डॉ0 एन. वर्गीज ने कहा कि उच्चतर शिक्षा वाले भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (आर.एस.ए.), राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक अधिकरण आदि से शिक्षा का केंद्रीयकरण होगा जो भारतीय राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में शक्तिहीन करने की तरफ ले जाएगा। संघवाद, राज्यों के अधिकारों व स्वायत्तता पर बहुत गंभीर प्रभाव जो इन्हें कमजोर करेंगे। शिक्षा समवर्ती सूची में आती है इसे केंद्र की तरफ झुकाव हो जाएगा। भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में मिले अधिकारों में कतर-ब्योंत करेगा।
शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में होने के बावजूद इस नीति से राज्यों का काम, केंद्र द्वारा बनाई गई नीतियों को लागू करने तथा केंद्र से तालमेल करना ही रह जाएगा। स्नातक से नीचे के कोर्स की अवधि को बढ़ाकर 4 साल कर दिया गया है। इससे स्वाभाविक रूप से आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा एक अन्य प्रभाव सर्टिफिकेट, डिप्लोमा व डिग्री का रोजगार के बाजार क्षेत्र में क्या मूल्य होगा? अनुसंधान के मुद्दे में एमफिल कार्यक्रम को निकाल देने से अनुसंधानकर्ताओं की ताकत को नहीं बढ़ाएगा तथा फंड की अपर्याप्तता बनी रहेगी व समर्थन नहीं रहेगा। इस अवसर पर ए.आई.पी.एस.एन. के ऑनलाइन न्यूज लेटर का केरल की उच्चत्तर शिक्षा मंत्री आर0 बिन्दु तथा जम्मू एवं कश्मीर के भूतपूर्व विधायक मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने संयुक्त रूप से विमोचन किया। भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के राष्ट्रीय सचिव डाॅ0 काशीनाथ चटर्जी ने असैम्बली में आए लोगों का धन्यवाद किया।
असैम्बली के दूसरे सत्र में नई शिक्षा नीति पर अलग-अलग राज्यों के अनुभवों पर संक्षिप्त चर्चा हुई। इसमें दो समानांतर सत्र चले, जिनमें एक उच्चतर शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं अनुसंधान विषयों पर केन्द्रित था। दूसरा *"प्रारंभिक बाल देखभाल व शिक्षा, स्कूली शिक्षा एवं वोकेशनल शिक्षा"* विषयों पर केन्द्रित था। उच्चत्तर शिक्षा वाले सत्र की अध्यक्षता ए.आइ.पी.एस.एन. से एन.के. दिनेश अग्रवाल तथा फैडकूटा के अध्यक्ष डी.के.एन. नोनियाल ने संयुक्त रूप से की। उधर स्कूली शिक्षा वाले सत्र की अध्यक्षता भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के सचिव डॉ0 काशीनाथ चटर्जी, स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव सी.एन. भारती तथा अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की सचिव मंडल सदस्या अर्चना प्रसाद ने संयुक्त रूप की।
उच्चतर शिक्षा वाले सत्र में हरियाणा की तरफ से हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति के राज्य अध्यक्ष प्रौ0 प्रमोद गौरी ने अपने विचार रखे। स्कूली शिक्षा वाले सत्र में समिति की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य मा0 वजीर सिंह तथा हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के राज्य महासचिव प्रभु सिंह ने विचार रखे। तीसरे और अंतिम सत्र में डाॅ0 डी. रघुनंदन ने मांगपत्र प्रस्तुत किया तथा सभी संगठनों के प्रतिनिधियों से अपने विचार साझा करने और सुझाव देने को कहा। जिस पर सात संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने सुझाव साझा किए। ए.आई.पी.एस.एन. की राष्ट्रीय महासचिव आशा मिश्र ने सभी भागीदार संगठनों से नई शिक्षा नीति-2020 को नकारने तथा देशभर में संयुक्त आंदोलन करने का आह्वान किया। कला जत्था की टीम के आह्वान गीत के साथ शिक्षा असैम्बली का समापन किया।
दिनांक : 1 जून 2023