Sunday, 19 November 2023

हरियाणा राज्य में आखिरी बार Assistant Professor की भर्ती

 हरियाणा राज्य में आखिरी बार Assistant Professor की भर्ती 2019  में की गयी थी साथ ही कुछ Subjects ऐसे भी है जिनकी vacancy 2016 के बाद से ही नही आयी है। अभी सरकार द्वारा High Court में पेश हलफनामे में बताया गया है कि राज्य में सहायक प्रोफेसर (Assistant professor) के कुल 8137 पद(vacancy)स्वीकृत है जिसमें से 4738 पद रिक्त है यानि की 60% vacancy रिक्त है। निदेशक उच्चतर शिक्षा (Directorate of Higher Education) ने 1535 रिक्त पदों को भरने के लिए 2 सितंबर 2022 को आग्रह पत्र (Requisition Letter) HPSC को भेजा परंतु  UGC की गाइडलाइंस को अपनाने के लिए कुछ संशोधन किए गये और 22 दिसंबर को D.H.E. ने HPSC को सूचित किया कि 1535 रिक्त पदों पर भर्ती को होल्ड पर रखा जाए।यूजीसी की गाइडलाइंस के अनुसार नियमों में संशोधन (amendment) की प्रक्रिया अब तक भी चल रही है। विभाग ने नियमों मे संशोधन करके करीब 3700 रिक्त पदों पर भर्ती करने की मंजूरी लेने के लिए फाईल हरियाणा कैबिनेट मंत्रिमंडल में 11 अक्तूबर को रखी but कैबिनेट मंत्रिमंडल ने उच्चतर शिक्षा विभाग की तरफ से संशोधित नियमों के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी।इसके बाद सरकार  पक्की भर्ती करने से बचने लिए एक policy पर काम कर रही जिसके तहत समूचे प्रदेश के Aided College से स्टाफ Govt. College में

 Merge कर दिया जायेगा ।इस प्रदेश में 97 Aided संस्थाएं है इन Aided Colleges में Teaching Staff के 2932 और Non Teaching Staff के 1664 पद है, यहाँ 2 लाख के आसपास छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे।Aided College के स्टाफ की तनख्वाह का 95% सरकार की तरफ से दिया जाता है ताकि विधार्थी सस्ती व अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त कर सकें। इन Colleges में छात्रों की संख्या को ध्यान में रखकर सरकार को चाहिए तो था कि यहां और स्टाफ भर्ती किया जाए मगर सरकार कर क्या रही है कि जो मौजूदा स्टाफ यहाँ कार्यरत है उसको भी यहाँ से हटाकर Govt.college में Merge करने की फिराक में और CM ने भी इस Merge के लिए अपनी सैद्धान्तिक मंजूरी दे दी है। अगर सरकार की ये योजना सिरे चढ गई तो सबसे पहले तो सभी Aided College पूरी तरह Private हो जायेंगे क्योंकि सरकार ने इनको कोई अनुदान नहीं देना है । और सरकार जब इन संस्थाओं को अनुदान नहीं देगी तो ईनहोने औनी पौनी तनख्वाह पर शिक्षक रखने है और फीस में बेहताशा बढ़ोत्तरी करनी है जिसके कारण एक ओर तो शिक्षा का स्तर गिरेगा दूसरी तरफ आर्थिक रूप से कमजोर छात्र शिक्षा प्राप्त करने से ही वंचित रह जायेंगे ।इसके साथ ही साथ जब ये स्टाफ सरकारी काॅलेज में Merge हो जायेगा तो सहायक प्रोफेसरों की पक्की भर्ती की लिए बहुत कम रिक्त पद बचेंगे। परंतु सरकार यही तक नहीं रूकने वाली Merger के बाद जो भी पद रिक्त रह जायेंगे उनको H.K.R.N हरियाणा कौशल रोजगार निगम (ठेका सिस्टम) के माध्यम से भरा जाएगा जो कि NET/ PH.D होल्डर अभ्यर्थियों के साथ घिनौना मजाक होगा।

सरकार की कोई  नियत नहीं है अब भर्ती करने क्योंकि सरकार का सारा फोक्स Higher Education के निजीकरण पर है। अगर सरकार की नियत होती तो D.H E. द्वारा सभी काॅलेज के प्रिसिंपल को Workload Assess करने का पत्र 3 नवंबर को लिखकर इसे 6 नवंबर को withdraw ना करती।

अगर सरकार इन दोनों योजनाओं को लागू करती है तो प्रदेश के हजारो युवा अभ्यर्थी जो सहायक प्रोफेसर भर्ती होने की उम्मीद लगाए बैठे है यह उनके साथ सरासर जुल्म,धोखा होगा। हम सरकार इस विषय पर सीधी और स्पष्ट शब्दों मे चेतावनी देते है कि सरकार की इस और शिक्षा और युवा अभ्यर्थी दोनों को तबाह करने वाली policy का पुरजोर विरोध करेंगे। 

आगामी समय में प्रदेश की सभी  यूनिवर्सिटीज में मिटिंग करके सरकार कि इस Black Policy के बारे सबको अवगत करा के और सभी अभ्यर्थियों लामबंद करके पंचकूला मे बङा रोष प्रदर्शन करेंगे ।

जारीकर्ता: सहायक प्रोफेसर अभ्यर्थी यूनिय

Saturday, 10 June 2023

राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली, 

 *रपट: राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली, नई दिल्ली (30 अप्रैल 2023)*

              - मास्टर वजीर सिंह

 

देश की राजधानी नई दिल्ली स्थित हरकिशन सिंह सुरजीत भवन में गत 30 अप्रैल 2023 को अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क और भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के संयुक्त तत्वाधान में एक राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली का संयुक्त आयोजन किया गया। आईफुक्टो, फेडकूटा, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट, स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, एस.एस.आई, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, आरटीई फॉरम आदि एक दर्जन से ज़्यादा जनसंगठनों ने सहयोग किया। इस राष्ट्रीय शिक्षा असैम्बली में देशभर के करीब 650 शिक्षकों, छात्रों एवं एकेडमीशियनों और वालंटियरों ने भाग लिया। जन विज्ञान आंदोलन और भारत ज्ञान-विज्ञान समिति से जुड़े हुए जम्मू एण्ड कश्मीर सहित 22 राज्यों से करीब 450 तथा अन्य सहयोगी संगठनों के करीब 200 प्रतिनिधि शामिल रहे।


उद्घाटन सत्र की शुरूआत कला जत्थे के गीत से हुई। जिसकी अध्यक्षता अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ0 सत्यजीत रथ, जे.एफ.एम.ई. की चेयरपर्सन नंदिता नारायण और एस.एफ.आई. के सचिव मन्मुख विश्वास के संयुक्त अध्यक्षमंडल ने की। ए.आई.पी.एस.एन की महासचिव आशा मिश्र ने *"सेव एजुकेशन, सेव द नेशन"* अभियान पर संक्षिप्त प्रस्तुति दी। जिसमें विभिन्न राज्यों में की गई पहलकदमियों एवं कार्यक्रमों बारे बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब देश कोरोना के कहर से जूझ रहा था तब लोगों की दुर्दशा पर ध्यान देने की बजाय केन्द्र सरकार ने नई शिक्षा नीति-2020 को जबरदस्ती थोप दिया। जबकि देश की जनजातियां एवं अनेक अनुसूचित जातियां आज भी मूलभूत शिक्षा से बहुत दूर हैं। उन्होंने अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क द्वारा करोना काल में लोगों की मदद बारे भी बताया। उनकी प्रस्तुति में यह उभर कर आया कि सामूहिक प्रयासों तथा राज्यों में क्या घटित हो रहा था।

 

उन्होंने अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क की देश भर में *"सेव एजुकेशन, सेव द नेशन"* अभियान के तहत विभिन्न राज्य इकाइयों द्वारा 11 नवंबर 2022 से 29 अप्रैल 2023 तक चली गतिविधियों बारे बताया। इसके लिए जे.एफ.एम.ई. के साथ मिलकर एक व्यापक आधार वाली कमेटी का गठन किया गया। फिर राज्यों में जाकर अभियान की सामग्री जैसे पंफलेट, पोस्टर एवं स्टीकर आदि के साथ स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों के साथ वार्ता की सामग्री तैयार की गई। राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 11 नवंबर को राज्य स्तरीय कन्वेंशनें और जनसभाएं की गई तथा अभियान के लिए तैयार की गई सामग्री का वितरण किया गया। अनेक राज्यों में कुछ क्षेत्रों में सरकार द्वारा स्कूलों को बंद करने की योजना के खिलाफ पहलकदमियां की गई। पांच पोजिशन पेपर तथा एक उच्चतर शिक्षा पर वार्ता पेपर पंचायत एवं गांव स्तर पर चर्चा के लिए तैयार किए गये। 


ग्राम पंचायत के स्तर पर दिवार लेखन, पोस्टर चिपकाने तथा पर्चे बांटने के कार्य के साथ-साथ हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया। फरवरी में खंड स्तरीय कन्वेंशनें/शिक्षा सभाएं और मार्च माह में जिला स्तरीय कन्वेंशनें/शिक्षा सभाएं आयोजित की गई। अप्रैल में राज्यों में अलग-अलग राज्य स्तरीय सांस्कृतिक टीमों द्वारा कला जत्थे चलाए गए। यह कार्यक्रम देशभर के 78 जिलों में किए गये। ये कला जत्थे हमारे स्वयंसेवकों को तैयार करने, संगठनों एवं जनसंगठनों को मोबलाइज करने तथा समाज में जागरूकता फैलाने के लिए चलाए गए। इनका उद्देश्य समविचारों वाले धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक आंदोलनों को एक साझा प्लेटफार्म पर लाना सुनिश्चित करना था ताकि एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया जा सके।


इस अभियान में स्कूल बंधीकरण और स्कूल एकीकरण का एकमात्र मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया। यह अभियान मध्य प्रदेश, झारखंड व हरियाणा आदि विभिन्न राज्यों में चलाया गया और अनेक तरीकों से हस्तक्षेप की पहल की गई। यह अभियान देश के 22 राज्यों, 250 जिलों, 550 खंडों और 15 हजार गांवों में 10 लाख से अधिक लोगों के बीच बातचीत रखने तथा दो लाख से ज्यादा परिवारों के दरवाजे तक दस्तख्त देने में सफल रहा। इस अभियान के तहत 10 लाख लोगों के हस्ताक्षर भी एकत्रित किए गए। दो हजार गांवां में ए.आई.पी.एस.एन. तथा भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के लर्निंग सेंटर चलाए जा रहे हैं ताकि ड्रॉपआॅउट को रोका जा सके।


केरल सरकार की उच्चतर शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने शिक्षा असैम्बली का उद्घाटन किया। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में बताया कि देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन किया जा रहा है। उनमें से मुगल इतिहास को हटा दिया गया है। नई शिक्षा नीति, आधुनिक शिक्षा के सभी पक्षों को संबोधित करती है लेकिन बड़ी ही चालाकी से सत्ताधारी पार्टी के वैचारिक एजेंडों को खाली जगह में घुसाया गया है। प्रस्तावित दस्तावेज आरक्षण जैसे संवैधानिक मानदंडों पर पूर्ण रूप से चुप्पी साधता है बल्कि इसमें आरक्षण पर एक भी शब्द या लाइन नहीं लिखी गई है। यह नीति संघीय ढांचे के सिद्धांत को पूर्ण रूप से खारिज करके केंद्रीयकरण को बढ़ावा देती है। इसमें विद्यायी या सामाजिक जांच-पड़ताल का कोई भी प्रावधान नहीं रखा गया है। 


इस नीति पर देश की संसद में पेश करके कोई बहस नहीं करवाई गई बल्कि जान बुझकर संसद को पूर्ण रूप से बाईपास किया गया। केवल मात्र एक विज्ञापन द्वारा नई शिक्षा नीति पर जनता के विचार मांगे गए थे लेकिन सभी सुझावों और उत्तरों को नकार दिया गया। यह नई शिक्षा नीति 36 वर्षों बाद आई है, इससे पूर्व 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई थी। अतः कोई भी नई शिक्षा नीति लाने से पूर्व पहले वाली शिक्षा नीति के गुण-दोषों की जांच-पड़ताल की जानी चाहिए थी। लेकिन नई शिक्षा नीति बनाने वालों ने कभी भी पूर्व शिक्षा नीति को पढ़ने एवं इसके प्रभावों का आकलन करने का प्रयास ही नहीं किया। यू.जी.सी. के पूर्व चेयरमैन सुखदेव थोराट ने अपने संबोधन में कहा कि 1948, 1966 और 1986 की पूर्व शिक्षा नीतियां शिक्षा क्षेत्र के व्यापक अध्ययन पर आधारित थी। 


1948 के राधाकृष्णन आयोग तथा 1966 के कोठारी आयोग ने शिक्षा की कमियों एवं सकारात्मकता का अध्ययन किया और कई नए सुझाव दिए। यदि हम वर्तमान दस्तावेज(एन.ई.पी.) पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित नीतियों की नकल मारी गई लगती है। थोराट ने आगे कहा कि 1986 के बाद तथा 1996 में रिवीजन के बाद हमारे शिक्षा का क्षेत्र भारी परिवर्तनों से गुजरा है। सन 1966 तक देश में मुश्किल से कोई प्राइवेट कॉलेज होता था लेकिन आज आधे से ज्यादा शिक्षण संस्थाएं प्राइवेट हैं। वर्तमान नीति इस बदलाव को नहीं देखती। मैं ऐसा सोचता हूं कि सरकार ने शिक्षा क्षेत्र की जरूरतों का आकलन करने के स्वर्ण अवसर को खो दिया है। नई शिक्षा नीति में सुझाव दिया गया है कि केंद्रीय व राज्यों के विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए एक सार्वजनिक टेस्ट (सी.यू.ई.टी.) होना चाहिए। जबकि हमारे देश में पहले से ही इंजीनियरिंग के लिए जे.ई.ई. तथा मेडिकल के लिए एन.ई.ई.टी. जैसी प्रवेश परीक्षाएं प्रचलित हैं। 


तमिलनाडु का अनुभव स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि गांव के गरीब छात्र, खासकर लड़कियां इस नई योजना का शिकार होंगे। वे कोचिंग केंद्रों तक नहीं जा सकेंगे और यदि जाते भी हैं तो प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग लेने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए। लेकिन देखने में आया है कि ऐसे छात्र जो बोर्ड परीक्षाओं में तो कम अंक अर्जित करते हैं जब कोचिंग क्लास लगाने के कारण मेडिकल व इंजीनियरिंग की सीटों पर दाखिला लेने में ज्यादा सफल हो जाते हैं। केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों की नई प्रवेश परीक्षा सी.यू.ई.टी. में भी ऐसा ही होगा।


स्कूली शिक्षा की पूर्व डीन प्रोफेसर अनीता रामपाल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रारंभिक दशकों में उच्चत्तर शिक्षा में जब सार्वजनिक संस्थाएं खोली गई, तब भी स्कूली शिक्षा में लगातार अनेक कमजोरी रही। भारत में सभी कमेटियों द्वारा शिक्षा पर जी.डी.पी. का 6 फीसदी खर्च करने की सिफारिशें की गई है। लेकिन अब अधिकतम केवल 3 फीसदी ही आवंटित किया जा रहा है। मौलिक शिक्षा में नामकरण पर 90 फीसदी पहुंचने के बावजूद उच्चत्तर शिक्षा में ड्रॉपआउट है। वर्तमान में माध्यमिक स्तर पर लगभग 50 फीसदी नामकरण ही होता है। शिक्षा का अधिकार कानून (आर.टी.ई.-2009) में 6 से 14 वर्ष की आयु तक फ्री में अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान होने के बावजूद नई शिक्षा नीति (एन.ई.पी.-2020) में इसे छोड़ दिया गया है। शिक्षा अधिकार कानून-2009 में अच्छी गुणवत्ता की सार्वभौमिक शिक्षा की बात की गई थी लेकिन नई शिक्षा नीति में केवल प्रारंभिक बाल देखभाल व शिक्षा के सार्वभौमीकरण तक सीमित कर दिया गया है। केवल ई.सी.सी.ई. को छोड़कर सार्वभौमीकरण शब्द का उपयोग इस नीति में कहीं नहीं किया गया है। नई शिक्षा नीति, ऑनलाइन शिक्षा को बहुत ज़्यादा प्रमुखता प्रदान करती है कि कल को सरकार वास्तविक भौतिक स्कूलों में दाखिला लेने के महत्व से भी इंकार कर सकती है।


भूतपूर्व उपकुलपति डॉ0 एन. वर्गीज ने कहा कि उच्चतर शिक्षा वाले भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (आर.एस.ए.), राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक अधिकरण आदि से शिक्षा का केंद्रीयकरण होगा जो भारतीय राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में शक्तिहीन करने की तरफ ले जाएगा। संघवाद, राज्यों के अधिकारों व स्वायत्तता पर बहुत गंभीर प्रभाव जो इन्हें कमजोर करेंगे। शिक्षा समवर्ती सूची में आती है इसे केंद्र की तरफ झुकाव हो जाएगा। भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में मिले अधिकारों में कतर-ब्योंत करेगा। 


शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में होने के बावजूद इस नीति से राज्यों का काम, केंद्र द्वारा बनाई गई नीतियों को लागू करने तथा केंद्र से तालमेल करना ही रह जाएगा। स्नातक से नीचे के कोर्स की अवधि को बढ़ाकर 4 साल कर दिया गया है। इससे स्वाभाविक रूप से आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा एक अन्य प्रभाव सर्टिफिकेट, डिप्लोमा व डिग्री का रोजगार के बाजार क्षेत्र में क्या मूल्य होगा? अनुसंधान के मुद्दे में एमफिल कार्यक्रम को निकाल देने से अनुसंधानकर्ताओं की ताकत को नहीं बढ़ाएगा तथा फंड की अपर्याप्तता बनी रहेगी व समर्थन नहीं रहेगा। इस अवसर पर ए.आई.पी.एस.एन. के ऑनलाइन न्यूज लेटर का केरल की उच्चत्तर शिक्षा मंत्री आर0 बिन्दु तथा जम्मू एवं कश्मीर के भूतपूर्व विधायक मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने संयुक्त रूप से विमोचन किया। भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के राष्ट्रीय सचिव डाॅ0 काशीनाथ चटर्जी ने असैम्बली में आए लोगों का धन्यवाद किया।

 

असैम्बली के दूसरे सत्र में नई शिक्षा नीति पर अलग-अलग राज्यों के अनुभवों पर संक्षिप्त चर्चा हुई। इसमें दो समानांतर सत्र चले, जिनमें एक उच्चतर शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं अनुसंधान विषयों पर केन्द्रित था। दूसरा *"प्रारंभिक बाल देखभाल व शिक्षा, स्कूली शिक्षा एवं वोकेशनल शिक्षा"* विषयों पर केन्द्रित था। उच्चत्तर शिक्षा वाले सत्र की अध्यक्षता ए.आइ.पी.एस.एन. से एन.के. दिनेश अग्रवाल तथा फैडकूटा के अध्यक्ष डी.के.एन. नोनियाल ने संयुक्त रूप से की। उधर स्कूली शिक्षा वाले सत्र की अध्यक्षता भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के सचिव डॉ0 काशीनाथ चटर्जी, स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव सी.एन. भारती तथा अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की सचिव मंडल सदस्या अर्चना प्रसाद ने संयुक्त रूप की। 


उच्चतर शिक्षा वाले सत्र में हरियाणा की तरफ से हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति के राज्य अध्यक्ष प्रौ0 प्रमोद गौरी ने अपने विचार रखे। स्कूली शिक्षा वाले सत्र में समिति की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य मा0 वजीर सिंह तथा हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के राज्य महासचिव प्रभु सिंह ने विचार रखे। तीसरे और अंतिम सत्र में डाॅ0 डी. रघुनंदन ने मांगपत्र प्रस्तुत किया तथा सभी संगठनों के प्रतिनिधियों से अपने विचार साझा करने और सुझाव देने को कहा। जिस पर सात संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने सुझाव साझा किए। ए.आई.पी.एस.एन. की राष्ट्रीय महासचिव आशा मिश्र ने सभी भागीदार संगठनों से नई शिक्षा नीति-2020 को नकारने तथा देशभर में संयुक्त आंदोलन करने का आह्वान किया। कला जत्था की टीम के आह्वान गीत के साथ शिक्षा असैम्बली का समापन किया।


दिनांक : 1 जून 2023

Friday, 26 May 2023

28 मई की जींद रैली और बहनें*

 *🍇28 मई की जींद रैली और बहनें*

  *🌹मेरा रविवार 🌹* पूनम


मैले कपड़े भरे पड़े है,आंगन धूल से अटे पड़े हैं।

कुम्हलाएं -कुम्हलाएं बच्चे, नई जिद़ पर अड़े खड़े।

तेल लगाना हैं बालों में,रूखे अलक झड़ रहे हैं।

माहवारी की जटिल वेदना,पुरे तन में बल पड़े हैं।

घड़ी  के कांटों सा जीवन मेरा,पति भी बात बात पर उलझ रहे हैं।

सखी-सहेली की प्लानिंग,सांस ससुर की मान मनौती।

मां बाप की बाते कितनी,बीच भंवर में लटक रही है।

पर ये जींद की रैली बहनों,मन मस्तिष्क में खटक रही है।


रोजगारहीन का कैसा जीवन?

शिक्षा बिन कुम्हलाता जीवन?


बिन पेंशन कच्ची नौकरी में कैसे घर चलाऊंगी?

दिन दिन गिरती सेहत मेरी, मुस्तैदी से दवा कहां से लाऊंगी?

*🌷बस मैंने सोच लिया है🌼*

28 मई का रविवार में,अपने हिस्से में लौटाऊंगी।

अपने अधिकारों का मैं साथी,बिगुल स्वयं बजाऊंगी।

मैं रैली में जाऊंगी,सबको ही ले जाऊंगी।


*पूनम* जिला उप प्रधान सर्व कर्मचारी संघ फतेहाबाद


*महिलाओं के लिए निजीकरण* .…

*आकस्मिक अवकाश नहीं*

*मातृत्व अवकाश नहीं*

*चाइल्ड केयर लीव नहीं* 

*लड़कियों की फीस माफ नहीं*

*रोजगार की सुरक्षा नहीं*

*पूरा वेतन नहीं*

हां है पता है क्या? नौकरी में बने रहने की शर्तें 

*शारीरिक शोषण*

*मानसिक प्रताड़ना*

प्राइवेट गाड़ी,बस की बजाय हम सरकारी बस में क्यों सुरक्षित महसूस करती है,बस वहीं सब कुछ।

 *अब सोचिए जरा महिलाओं के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का महत्व व इसे बचाने की लड़ाई में भागीदारी की जरूरत?????* 

# *28 मई, जींद रैली*

अलका हिसार

*🍇28 मई जींद रैली में शिक्षक, बच्चे व अभिभावक क्यों जाए?*

 *🍇28 मई जींद रैली में शिक्षक, बच्चे व अभिभावक क्यों जाए?*

*🍇915 हाई स्कूल बंद या पदावनत (डिमोट)* 

*ये पहले वाले 4803 से अलग होंगे*

 कृष्ण नैन उप महासचिव हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ 

       कल के हत्यारे अखबारों की जहरीली सुर्खियां थी,कि 113 हाई स्कूल पदोन्नत (प्रोमोट) करके बाहरवीं के बनाने की घोषणा भाजपा सरकार ने की।यह भी छपा की मुख्यमंत्री ने बजट भाषण में किया वायदा पुरा किया।यह वह हिस्सा है जो दिखाया गया।

*अब वह देखे जो छुपाया गया*

    अब तक 1028 दसवीं के स्कूल हरियाणा में थे।जो सभी (काली शिक्षा नीति के तहत टू -टायर की और बढ़ते कदम) खत्म कर दिये जाएंगे। इनमें से 113 तो बाहरवीं के बना दिये। *बाकी 915 स्कूलों का क्या होगा? इनके दो रास्ते हैं काली शिक्षा नीति में।एक तो बंद (राशन पानी ,स्टाफ देना बंद करके मर्ज की आड़ में मारने को छोड़ देना) दूसरा पदावनति (डिमोट कर आठवीं का बना दो)कर दो।अगली ट्रांसफर ड्राईव या चुनाव के बाद अगर भाजपा रिपिट होती है तो यही खेल प्राइमरी व मिडिल स्कूलों का होगा।कुछ को पदोन्नत बाकी की हत्या।* 

     शिक्षा नीति में स्कूल कम्पलैक्स की अवधारणा यही है कि धीरे धीरे (हरियाणा में तेजी से)एक कलस्टर स्कूल बचेगा।अब सरकार शिक्षा लेकर बच्चों तक नहीं जाएगी, बल्कि बच्चों को भारी राशि का प्रबंध कर शिक्षा संस्थानों तक स्वयं आना होगा।साथ ही गलाकाट प्रतियोगिता से अपने भाई बहनों को हराना भी होगा।जिसे प्रतियोगिता कहते है।आपके संज्ञान के लिए बताते चले कि प्रतियोगिता का विपरिर्थक *सहयोगी/दोस्त* होता है।अब सरकार शिक्षकों को रोजगार नहीं देंगी, बल्कि एचटेट पास बेरोजगार स्वयं कौशल रोजगार निगम में शोषण करवाने आएंगे। दोनों जगह सरकार व दरबारी पूंजीपति मिलकर लूटेंगे।शिक्षा देते हुए बच्चों को,शिक्षक लगाते हुए मम्मी पापा को।इस बहम में नहीं रहना की अडानी का बेटा पढा़ने आएगा।पढा़ना तो हमें ही है।बस बात सेवा शर्तों की है।मान सम्मान की सेवा शर्तें, वेतनमान,सुरक्षा व पेंशन मिलेंगी या नहीं। *हरियाणा कौशल रोजगार निगम के तहत लगे वन विभाग के कर्मचारियों को कल यह कह कर हटा दिया गया कि बजट नहीं है।BMS जो इसकी पैरवी करती है,एक सवाल तो उससे भी बनता है।* 

 इसी जुल्म को खत्म  करने के लिए रखी है *28 मई को जींद रैली*

तो चले आइये,शोर मचाते हुए,हवा बदलने के लिए।

चुनाव से पहले गारंटी लेंगे जनता की सेवाओं के महकमों को बचाने की, लाखों बेरोजगारों के रोजगार की, कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने की और गारंटी लेंगे पुरानी पेंशन बहाली की। ध्यान रहे गारंटी का मतलब वायदा करना,हां भरना नहीं है।

नीतियां बदलकर, नोटिफिकेशन जारी कर व्यवहार में लागु होने तक संघर्ष जारी की *चेतावनी रैली* है।

*🍇अब डेरे मंजिल पर ही डाले जाएंगे*

*🍇हम सब मिलकर जींद रैली में आएंगे*

Wednesday, 8 February 2023

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और हरियाणा में उच्च शिक्षा की वित्त व्यवस्था 

 15.05.2022

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और हरियाणा में उच्च शिक्षा की वित्त व्यवस्था 

                  सुरेंद्र कुमार,

पूर्व प्रोफेसर अर्थशास्त्र और डीन अकादमिक मामले

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक

ई-मेल आईडी: ksurin@rediffmail.com


आजकल केंद्र और राज्य सरकारों ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की प्रक्रिया शुरू की है। इस व्यवस्था क़्रम में कई अंतर्विरोध सामने आ रहे हैं जिन्होंने समाज के कई समुदायों को आंदोलित कर दिया है।  इस लेख में, हम विशेष रूप से नयी शिक्षा नीति के परिपेक्ष में हरियाणा में सार्वजनिक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में उच्च शिक्षा के वित्तपोषण से संबंधित मुद्दों की जांच करें गे। 


कस्तूरीरंगन समिति ने अपने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि शिक्षा के लिए विभिन्न सरकारों के वित्तीय प्रावधान को सार्वजनिक व्यय कहना ग़लत है, क्योंकि यह वास्तव में एक दूरगामी निवेश है। इसलिए शिक्षा के लिए बजटीय प्रावधान करते समय राजनीतिक नेतृत्व के साथ-साथ नौकरशाही को भी अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए और शिक्षा पर होने वाले खर्च को सार्वजनिक व्यय न मान कर इसे निवेश मानना चाहिए। शिक्षा पर निवेश शायद एक राष्ट्र के लिए सबसे अच्छा निवेश होता है। शिक्षा से सामाजिक लाभ निजी रिटर्न/लाभ की तुलना में तीन से चार गुना अधिक होता है।


 एनईपी-2020 ने रेखांकित किया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों को अपर्याप्त वित्तीय सहायता सरकारी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने में सब से प्रमुख रोड़ा है। केंद्र और राज्य सरकारों की शिक्षा पर संयुक्त व्यय भारत में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.43% है। यह अफ़सोस का विषय है कि भारत में शिक्षा के लिए बजटीय सहायता दुनिया के विकसित और विकासशील देशों की तुलना में अब तक सबसे कम रही है  शिक्षा नीति यह सिफारिश करती है कि  शिक्षा पर निवेश (व्यय) को सकल घरेलू उत्पाद के 6% तक तुरंत बढ़ाया जाना चाहिए। भारत सरकार ने पहली शिक्षा नीति,1968 में सकल घरेलू उत्पाद के 6% शिक्षा पर खर्च करने की प्रतिबद्धता प्रकट की थी लेकिन आज तक इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया गया। सरकार की प्रतिबद्धता केवल काग़ज़ों में है। भारत में शिक्षा की उपेक्षा का इस से बड़ा यह बहुत बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है?  

दूसरा, भारत में केंद्रीय और प्रांतीय सरकारें अपने वार्षिक बजट का केवल 10% हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती हैं। कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की थी कि इन बजटीय प्रावधानों को अगले दस वर्षों में हर साल एक प्रतिशत की वृद्धि के साथ बढ़ाकर 20% तक बढ़ाना चाहिए। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नयी शिक्षा नीति को स्वीकार करते हुए इस सिफ़ारिश का संज्ञान ही नहीं लिया। शायद शिक्षा नीति में सरकार वित्तीय प्रबंध का कोई पक्का वायदा नहीं करना चाहती थी। यह सरकार की शिक्षा के वित्तीय प्रबंधन के प्रति प्रतिबद्धता पर प्रश्न चिन्ह लगती है?  दूसरी और नीति दस्तावेज इस बात पर जोर देता है कि यह महत्वपूर्ण है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सभी फंड समय पर निर्बाध रूप से जारी किए जाएं। एक बार जब सरकार द्वारा बजट को मंजूरी दे दी जाती है, तो आवंटित धन के किसी भी हिस्से को रोकने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। निधि वितरण की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। निगरानी और जवाबदेही सभी स्तरों पर तय की जानी चाहिए। इसके अलावा, नीति अनुशंसा करती है कि सरकार को पर्याप्त संख्या में शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति के साथ-साथ शिक्षकों के विकास के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता और धन प्रदान करना चाहिए। नीति इस बात को रेखांकित करती है कि वित्तीय प्रशासन और प्रबंधन, को उपयुक्त रूप से संशोधित और सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए  ताकि उच्च शिक्षण संस्थान किसी प्रकार की अनिश्च्यता की स्थित में न रहें। 


हरियाणा सरकार ने सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को दीर्घकालीन अनुदान के स्थान पर ऋण देने की योजना के तहत 147.75 करोड़ रुपये की पहली किश्त जारी करने की अधिसूचित 12.05.2022 को जारी की। राज्य सरकार ने राज्य के विश्वविद्यालयों को सूचित किया है कि इस वर्ष से वार्षिक अनुदान को राज्य सरकार से विश्वविद्यालयों को ऋण के रूप में माना जाएगा। यह भी बताया गया है कि राज्य सरकार सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए कदम उड़ाये क्योंकि यह एक विश्वविद्यालय की वास्तविक स्वायत्तता की नींव है! जब हरियाणा समाज के विभिन्न वर्गों ने विरोध किया तो सरकार द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया की विश्वविद्यालयों को जारी की गयी राशि ऋण नहीं अनुदान है ! 

सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों को छात्रों और जनता के लिए विभिन्न सेवाओं के लिए उपयोगकर्ता शुल्क बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। कुछ विश्वविद्यालयों ने अपनी फीस असामान्य रूप से कई गुना बढ़ा दी है, बिना किसी पारदर्शी तरीके से सेवा की लागत की गणना करने के और केवल मात्र अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए, जो अर्थशास्त्र में एकाधिकार किराए के बराबर है। यह सार्वजनिक संस्थान के एकाधिकार का दुरुपयोग है, जिस का शिक्षा के क्षेत्र में कोई औचित्य नहीं है I  छात्रों के साथ-साथ शिक्षक संघों ने सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के इस तरह के कदमों के खिलाफ विरोध शुरू किया तो  इन प्रवधानो को वापिस ले लिया गया या कम कर दिया गया। इस तरह के कदम विश्व विद्यालयों के शैक्षणिक वातावरण को दूषित करते हैं। 


हरियाणा सरकार के इन नीतिगत निर्णयों में से कोई भी भारत सरकार द्वारा अनुमोदित शिक्षा नीति के अनुरूप नहीं है। शिक्षा नीति में यह कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को आर्थिक रूप से स्वायत्त होना चाहिए। स्वायत्ता केवल पठन-पाठन और प्रशासन की है। इसलिए विश्व विद्यालयों की स्वयता के नाम पर आर्थिक स्वयता पर ज़ोर देना सरकार का अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ना है। हरियाणा सरकार नई शिक्षा नीति को अक्षरश: लागू करने का दावा करती है, लेकिन उसके इस तरह के कदम हमारे सार्वजनिक शिक्षा संस्थान में जनता के विश्वास को बहाल नहीं रखते। इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि हरियाणा सरकार को अपने तदर्थ कदमों पर पुनर्विचार करना चाहिए और उच्च शिक्षा प्रणाली की अखंडता को बहाल करना चाहिए जैसी की एनईपी-2020 में परिकल्पना की गई है ताकि यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों का निर्माण कर सके जो 21वीं सदी के समाज और अर्थव्यवस्था के सामने उभरती चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हों।